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________________ तिरता हुआ हो जावेगा फिर उसकी बूम नहीं सुनाई देगी। यही श्रेय है। लि. हंसविजय ( उक्त दोनों पत्र-व्यवहार की मूल हस्ताक्षर कॉपी के ब्लाक पीछे परिशिष्ट में दिये गये हैं। ) (४) स्वप्न की उपज देवद्रव्य में हो जानी चाहिये । * स्वप्नों की और मालारोपण की उपज देवद्रव्य में ही जानी चाहिये । इस विषय में पू. सागरानंद सूरीश्वरजी महाराज श्री का स्पष्ट शास्त्रानुसारी फरमान स्वप्नों की आय के विषय में तथा उपधान तप की माला संबंधी आय के विषय में श्री संघ को स्पष्ट रीति से मार्गदर्शन देने हेतुपू. पाद आचार्य भगवंत श्री सागरानन्दसूरीश्वरजो महाराजश्री ने ‘साग़र समाधान' ग्रन्थ में जो फरमाया है, वह प्रत्येक धर्मराधक के लिए जानने योग्य है। प्रश्न- २६७ उपधान में प्रवेश तथा समाप्ति के अवसर पर माला की बोली को आय ज्ञानखाते में न ले जाते हुए देवद्रव्य में क्यों ले जायी जाती है ? समाधान- उपधान ज्ञानाराधन का अनुष्ठान है, इसलिए ज्ञान खाते में उसकी आय जा सकती है-ऐसा कदाचित आप मानते हो । परन्तु उपधान में प्रवेश से लेकर माला पहनने तक की 40 ] [ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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