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________________ में उसे ले जाना उचित नहीं है । इस सम्बन्ध में राजनगर के जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनि सम्मेलन का ठहराव स्पष्ट निर्देश करता है । धर्मसाधना में उद्यमशील रहना । लि. 'प्रा. विजय मनोहरसूरि का धर्मलाभ' (१४) तलाजा ता. १३-८-५४ लि. विजयदर्शन सूरि आदि । तत्र देवगुरु भक्तिकारक शा. अमीलाल रतिलाल योग्य वेरावल बन्दर; धर्मलाभ | आपने चवदह स्वप्न, घोडिया, पारणा तथा उपधान की माला की उपज साधारण खाते में ले जाना या देवदव्य खाते में ? यह पूछा है । इस विषय में लिखना है कि जो प्रामाणिक परम्परा चली आ रही है उसमें परिवर्तन करना उचित नहीं है । एक परम्परा तोड़ी जावेगी तो दूसरी परम्परा की टूट जाने का भय रहता है । अब तक तो वह आय देवद्रव्य खाते ही ले जाई जाती रही है । अतः उसी तरह वर्तन करना उचित प्रतीत होता है । यद्यपि वह स्वप्न दर्शन प्रभु की बाल्य अवस्था के हैं परन्तु वे इसी भव में तीर्थंकर होने वाले हैं इसलिएबालवयरूप द्रव्य निक्षेप को भाव निक्षेप का मुख्य कारण मानकर शुभ कार्य करने हैं अर्थात् त्रिलोकाधिपति प्रभु भगवंत को उद्देश्य में लेकर हो स्वप्न आदि उतारे जाते हैं । जिस उद्देश्य को लेकर कार्य किया जाता हो उसी उद्देश्य में उसे खर्च करना उचित समझा जाता है | अतः त्रिभुवननायक प्रभु को लक्ष्य में रखकर स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ] [23
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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