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________________ स्वप्नादिक का घी बोला जाता है इसलिए देवद्रव्य में ही वह आय लगाई जाय, यह उचित मालूम होता है । ( पू. आ. म. श्री विजयनेमि सूरीश्वरजी म. श्री के पट्ट प्रभावक आचार्य महाराजश्री विजय दर्शनसूरीश्वरजी म. श्रीजी का उक्त अभिप्राय है | ) (१५) भुज ता. १२-८-८४ धर्मप्रेमी सुश्रावक अमीलाल भाई, लि. भुवनतिलकसूरि का धर्मलाभ । पत्र मिला । जिनदेव के आश्रित जो घी बोला जाता है वह देवद्रव्य में ही जाना' चाहिए, ऐसे शास्त्रीय पाठ हैं । 'देवद्रव्य - सिद्धि' पुस्तक पढ़ने की भलामन है । मुनि सम्मेलन में भी ठहराव हुआ था । देवाश्रित स्वप्न, पारणा या वरघोड़ा आदि में बोली जाने वाली बोलियों का द्रव्य तथा मालारोपण की आय - यह सब देवद्रव्य ही है । देवद्रव्य के सिवाय अन्यत्र कहीं भी किसी भी खाते में उसका उपयोग नहीं किया जा सकता । कुछ व्यक्ति इस सम्बन्ध में अलग मत रखते हैं परन्तु वह अशास्त्रीय होने से अमान्य है । देवद्रव्य की वृद्धि करने की आज्ञा है परन्तु उसकी हानि करने वाला महापापी और अनन्त संसारी होता है, ऐसा शास्त्रीय फरमान है । आजके सुविहित शास्त्र-वचन श्रद्धालु आचार्य महाराजाओं का यही सिद्धान्त और फरमान है क्योंकि वे भवभीरु हैं । 24 ] [ स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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