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'साणंद से आचार्य महाराजश्री विजयमेघसूरीश्वरजी म. आदि की तरफ से
'बम्बई मध्ये देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक जमनादास मोरारजी योग धर्मलाभ । यहाँ सुखशाता है । आपका पत्र मिला। उसके सम्बन्ध में हमारा अभिप्राय यह है कि स्वप्नों की बोली सम्बन्धी जो कुछ आय हो उसे देवद्रव्य के सिवाय अन्यत्र नहीं ले जाई जा सकती है । अहमदाबाद, भरुच, सूरत, छाणी, पाटण, चाणस्मा, महेसाणा, साणंद आदि बहुत से स्थानों में प्रायः ऊपर कही हुई प्रवृत्ति चलती है । यही धर्मसाधन में विशेष उद्यम रखें।'
द. : सुमित्रविजय का धर्मलाभ
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उदयपुर आ. सु. ६ मालदास की शेरी
'जैनाचार्य विजय नीतिसूरीश्वरजी आदि ठाणा १२. शान्ताक झ मध्ये सुश्रावक देवगुरु भक्तिकारक श्रावकगुण सम्पन्न शा. जमनादास मोरारजी जोग धर्मलाभ बांचना । देवगुरु प्रताप से सुखशाता है । उसमें रहते हुए आपका पत्र मिला। बांचकर समाचार जाने । पुनः भी लिखियेगा। पुरानी प्रणालिका अनुसार हम स्वप्नों की आय को देवद्रव्य में ले जाने के विचार वाले हैं। क्योंकि तीर्थंकर की माता स्वप्नों को देखती है, वह पूर्व में तीर्थकर नाम बांधने से तीर्थंकर माता चवदह स्वप्न देखती है । वे
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[ स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य