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________________ च्यवन कल्याणक के सूचक हैं । अहमदाबाद में सपनों की उपज को देवद्रव्य माना जाता है । यही । जो याद करे उसे धर्मलाभ कहियेगा | द. : 'पंन्यास सम्मतविजयजी गणी के धर्मलाभ' (४) ता. २८-९ – ३८ सिद्धक्षेत्र पालीताना से लि० आचार्य श्री विजयमोहनसूरिजी आदि । तत्र देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक सेठ जमनादास मोरारजी मु. शान्ताक्रूझ योग्य धर्मलाभ के साथ - यहां देवगुरु प्रसाद से सुखशाता है । आपका पत्र मिला । समाचार जानें । पर्वाधिराज श्री पर्युषण पर्व में स्वप्नों की बोली के द्रव्य को किस खाते में गिनना, यह पूछा गया तो इस विषय में यह कहना है कि - गज, वृषभादि जो चौदह महास्वप्न श्री तीर्थंकर भगवन्त की माता को आते हैं, वे त्रिभुवन पूज्य श्री तीर्थंकर महाराज के गर्भ में आने के प्रभाव से ही आते हैं । अर्थात् माता को आने वाले स्वप्नों में तीर्थंकर भगवान् ही कारण हैं । उक्त रीति से स्वप्न आने में जब तीर्थंकर भगवन्त कारण हैं तो उन स्वप्नों की बोली के निमित्त जो द्रव्य उत्पन्न होता है, वह देवद्रव्य में ही गिना जाता है । ऐसा हमको उचित लगता है । जिस द्रव्य की उत्पत्ति में देव का निमित्त हो वह देवद्रव्य ही गिना जाना चाहिए, ऐसा हम मानते हैं । इतना ही । धर्मकरणी में विशेष उद्यत रहें । स्मरण करने वालों को धर्मलाभ कहें । स्वप्नद्रव्य; देवद्रव्य ] आसोज सु. ३ सोमवार द. : धर्मविजय का धर्मलाभ [ 7
SR No.002500
Book TitleSwapnadravya Devdravya Hi Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakchandrasuri, Basantilal Nalbaya
PublisherVishvamangal Prakashan Mandir
Publication Year1984
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size8 MB
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