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पू. पाद आचार्यदेवादि मुनिवरों के अभिप्राय
ता. २३-१०-३८ 'अहमदाबाद से लि० पूज्यपाद आराध्यपाद आचार्यदेव श्री श्री श्री विजयसिद्धि सूरीश्वरजी महाराजश्री की ओर से तत्र शान्ताक्र ुझ मध्ये देवगुरु पुण्य प्रभावक सुश्रावक जमनादास मोरारजी वि० श्रीसंघ समस्त योग्य |
मालूम हो कि आपका पत्र मिला । पढ़कर समाचार जाने । पूज्य महाराजजी सा. को दो दिन से ब्लड प्रेशर की शिकायत हुई है । इसलिये ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने की झंझट से दूर रहना चाहते हैं । इसलिए ऐसे प्रश्न यहाँ न भेजे क्योंकि डाक्टर ने मगजमारी करने ओर बोलने की मनाही कर रखी है । तो भी यदि हमारा अभिप्राय पूछते हो तो संक्षेप में बताते हैं कि 'स्वप्नों की आमदनी के पैसे हम तो देवद्रव्य में ही उपयोग में लिखाते हैं | हमारा अभिप्राय उसे देवद्रव्य मानने का है । अधिकांश गांवों या नगरों में उसे देवद्रव्य के रूप में ही काम में लेने की प्रणाली है । ' साधारण खाते में कमी पड़ती हो तो उसके लिए दूसरी पानड़ी ( टीप ) करना अच्छा है परन्तु स्वप्नों के घी की बोली के भाव २ 11 ) के बदले ५) का भाव करके आधे पैसे देवद्रव्य में ले जाना उचित नहीं है । तथा यदि श्रीसंघ ऐसा करता है तो वह दोष का भागीदार ऐसा करने की अपेक्षा साधारण खाते अलग पानडी करना क्या बुरा है ? इसलिए स्वप्नों के निमित्त के पैसों को साधारण खाते में ले जाना हमको ठीक नहीं लगता है | हमारा अभिप्राय उसे देवद्रव्य में ही काम में लेने का है ।'
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पू. महाराजश्री की आज्ञा से - द. : मुनि 'कुमुदविजयजी'
स्वप्नद्रव्य देवद्रव्य ]
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