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( ३. ट्रस्टियों के कर्तव्य (१) प्रत्येक ट्रस्टी को आपमति, बहुमति और सर्वानुमति के आग्रही नहीं बनना चाहिए किन्तु शास्त्रमति के ही आग्रही रहना जरूरी है। मन्दिरादि के तथा वहीवट (संचालन) आदि के कार्य शास्त्र के आधार से श्री अरिहन्त परमात्मा की आज्ञा के अनुसार करने का ध्यान रखना चाहिये ।
(२) अपने बोले हुए चढावे की या स्वयं ने चंदा आदि में लिखाई गई देवद्रव्य आदि की रकम शीघ्रतया संघ की पेढी में भरपाई करानी चाहिए और लोगों में भी जो देवद्रव्यादि की रकम बकाया होवे तो उसकी स्वयं या मुनीम के द्वारा उगाही करके इकट्ठी करनी चाहिये । .. ___(३) हमेशा मन्दिर में देवाधिदेव अरिहन्त परमात्मा के दर्शन पूजन करने चाहिए और मन्दिर की सार-संभाल रखकर आशातनाओं को दूर करने, करवाने का प्रयास करना चाहिए । इसी तरह उपाश्रयादि धर्मस्थानोंमें भी रोज जाना चाहिए और उसकी साफ-सफाई वगैरह करवाने का ध्यान रखना चाहिए । उपाश्रय में गुरुमहाराज विराजमान होवे तो प्रतिदिन उनको वंदन करने जाना चाहिए तथा उनका प्रवचन सुनना चाहिये।
(४) उनको स्वयं जिस रीत से संचालन करते हो उसकी जानकारी संघ को देनी चाहिये उस में जो भुलचूक बतावे उसका सुधारा करना चाहिये । संचालन करने की विधि को बताने वाले शास्त्रों का श्रवण अवसर पर सुनने चाहिये।
प्रत्येक ट्रस्टी का कर्तव्य है कि ट्रस्टी बनने पर मन्दिर में दर्शन पूजन करने वालों की संख्या में वृद्धि होवे तथा उपाश्रय में प्रतिक्रमण
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देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो? * १६