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उसके बाद शुद्ध जल से साफ कर शुद्धि की । मुनि महात्मा ने भी अपने किये अतिचार पाप का प्रायश्चित्त कर लिया। इस दृष्टान्त से यह बात सिद्ध होती है कि देवद्रव्य का भक्षण हलाहल विष है । अनजान में भी वह हो जाये तो इस जन्म में भी नुकसान किये बिना नहीं रहता तो जानबुझ कर खाने वाले की तो क्या दशा होवे ?
इससे सब श्रावको को यही सिखने का है कि अधिक द्रव्य देकर भी देवद्रव्य की चीज अपने उपयोग में नहीं लेनी और परस्पर किसी को देनी भी नहीं चाहिए ।
देवद्रव्य के भक्षणादि के बारे में शास्त्रों में बहुत से दृष्टांत दिये गये है उसको पढकर/सुनकर देवद्रव्य के भक्षणादि से बचने के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिए ।
देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * १५