________________
भारी मन्दता आ जाती है । इसलिए हरेक पुण्यवान श्रावकों का शास्त्रानुसार कर्तव्य है कि बोली बोलते ही पैसे भरपाई करा देना चाहिए जिससे सच्चे पुण्यबन्ध के भागीदार बन सके । अपने यहां पुण्यवान उदारताशील ऐसे श्रावक हो गये हैं कि चढावे बोलकर तुरन्त ही पैसे भरपाई करवाते थे । महामंत्रीश्वर पंथडशानं गिरनार तीर्थ के दिगम्बर के साथ विवाद में इन्द्रमाला को पहिनकर गिरनार तीर्थ जैन श्वेताम्बर की मालिकी का करने के लिए सोने का सद्व्यय करके चढावा लिया था । वह ५६ धडी = करीब २६३ किलो सोना भरपाई करने के लिए ऊंटडिओं पर अपने घर से सोना लाने के लिए अपने आदमीओ को भेजे . थे क्योंकि सोना न आवे वहाँ तक अन्नपाणी न लेना यह निर्णय था । ५६ धडी सोना लाने में दो दिन लगे, दो दिन के उपवास हुए तीसरे दिन पेढी में ५६ ( घडी = करीब २६३ किलो) सोना चुकाकर पारणा किया । यह बात खास याद रखने जैसी है और याद रखकर जीवनमें अमली बनाने जैसी है । जो बोली बोलो वह तुरन्त दे दी। हो सके तो बोली बोलने वालों को पैसे भी जेब में लेकर आना चाहिए । उगाही करने के लिए मुनीम वगैरह संचालन करने वालों को रखने पडे यह रीत योग्य नहीं है । इसमें शाहुकारी नहीं रहती है । बोली के पैसे तुरन्त देना यह पहली शाहुकारी है, विलंब करते हुए भी यदि ब्याज सहित देवे तो दूसरी शाहुकारी है । ब्याज भी बाजार भाव का होना चाहिए । स्वयं लेवे ड्रेढ दो टका और देवे बारह आना व्याज, तो बारह आना खा जाने का दोष लगता है । चढावे की रकम तुरन्त न देने में कभी अकल्पित बनाव भी बन जाते है । श्रीमंताई पुण्य के आधीन है पुण्य खतम हो जावे और पाप का उदय जागृत हो जावे तो बडा श्रीमंत भी एकदम दरिद्री हो जाता है सब लक्ष्मी चली भी जाती है, या चुकाने के पहिले ही मृत्यु हो जावे तो ऐसी अवस्था में चढ़ावे के रूपये जमा न करा सके तो उसको अन्त
देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * १०