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(२. देव--द्रव्यादि की बोली बोलने)
वाले के कर्त्तव्य :प्रत्येक महानुभावां का कर्तव्य है कि महोत्सवादि के प्रसंग में प्रथम पूजा वगैरह करने की तथा पर्युषण में स्वप्नाजी झुलाने इत्यादि की जो बोली बोली जाती है। उसमें जो महानुभाव चढावा लेते है और प्रथम पूजादि का लाभ प्राप्त करते है उनको प्रथम पूजादि का लाभ लेने के पहले ही या पश्चात् तुरंत ही बोली के रूपये संघ की पेढी में भरपाई कराना चाहिए। जिससे देव-द्रव्यादि द्रव्य के भक्षण का पाप नहीं लगे । तुरंत ही पैसे संघ की पेढी में भर-पाई कराने से वे पैसे उचित रीति से विधिपूर्वक रखने से व्याज चालु हो जाता है कई साल तक चढावे के पैसे भरपाई न करनेवाले जब पैसे चुकाते है तब ब्याज देते ही नहीं इस कारण उनको देवद्रव्यादि द्रव्य के भक्षण का बडा भयंकर दोष लगता है। व्यवहार में भी कोई आदमी किसी को व्याज से रुपये उधार देता है तो उधार लेने वाला एक सप्ताह में ही वापिस वे रूपये लौटा देता है तब उधार देने वाला एक महिना का पूरा ब्याज ले लेता है न केवल सप्ताह का, तो फिर वह बोली आदि के पैसे तुरंत न चुकावे, कई महिनों या वर्षों के बाद चुकावे वे भी बिना ब्याज के यह कितना अनुचित है ? इसीलिए शास्त्र में कहा गया है कि चढावादि के पैसे तुरंत ही चुका दो, तो आपको बोली का सच्चा लाभ मिलेगा । तुरंत पैसे दे देने में एक लाभ यह भी है कि बोली बोलकर लहावा लेने के वक्त में अमाप उत्साह होने के वजह से उसी समय में ही पैसे दे देने में अपूर्व कोटिका पुण्यबन्ध होता है । लेकिन उसी समय पैसे न दिये जाए, पैसे देने में विलम्ब किया जावे तो पीछे पैसे देने में उत्साह मंद पड जाता है और उत्साह का भंग भी हो जाता है। बिना उत्साह से पैसे भरपाई करे तो पुण्यबन्ध में भी
देवद्रव्यादि का संचालन कैसे हो ? * ९