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हमारी जितनी भी आत्म कल्याण हेतु साधना होती है उसका एक मात्र उद्देश्य है मन को वश में करना। कारण कि जब तक मन डावांडोल रहेगा तब तक चाहे हम कितनी भी साधना करें, आराधना करें, उपासना करें, उसका कोई अर्थ नहीं, सब व्यर्थ हैं।
_मन के संदर्भ में प्रकाश डालते हुए अध्यात्म युग पुरूष प्रवर्तक प्रवर श्री अमर मुनि जी महाराज अपने अमृत प्रवचनों के माध्यम से कहते हैं-बन्धुओं! हमारा ये मन उस चंचल घोड़े के समान है जो अपने मालिक को, सवार को विपरीत दिशा की ओर ले जाता है, पतन के मार्ग पर अग्रसर कर देता है।
। इस मन रूपी दुष्ट घोड़े को काबू करना है तो ज्ञान की लगाम लगाओ। क्योंकि अभी तुम इस पर सवार नहीं हो, ये तुम पर सवार है और जिस दिन आपने इसे ज्ञान की लगाम के द्वारा काबू कर लिया उस दिन आप इसके इशारों पर नहीं ब्लकि ये आपके इशारों पर चलेगा। हमारे महर्षियों ने कहा है