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________________ बस यही तो मुश्किल है। तन से जोग धारण करना कोई बड़ी बात नहीं, उसमें कोई विशेष जोर भी नहीं लगता । वही बात - 'मूंड मुंडाए तीन गुण, सिर की मिट जाए खाज । खाने को लड्डु मिलें, लोग कहें महाराज ।।' एक भक्त पहुँचा सन्त के पास, कहने लगा-महाराज ! मैं बड़ा दुःखी हूँ। मेरी घरवाली जब नई-नई आई थी, तब चन्द्रमुखी लगती थी, फिर थोड़े दिन बाद उसने सूरजमुखी का रूप धारण कर लिया और अब तो वो पूरी ज्वालामुखी बन चुकी है। कृपा करो कोई मंत्र बता दो, जिससे वो मेरे काबू आ जाए। सन्त कहने लगे-भाई ! वो मंत्र मुझे आता होता तो मैं साधु क्यों बनता ? (यानि मेरे साथ भी यही समस्या थी, तभी तो साधु बन गया) ये तो एक चुटकुला है, चुटकुले का अर्थ आप समझते हैं ना ? जिसमें चोट करने की कला हो, कहने का अभिप्राय ऐसे साधुओं की जमात तो आज हमारे देश में बहुत इकट्ठी हो चुकी है। पर योग को साधना इतना सस्ता सौदा नहीं है, कोई बच्चों का खेल नहीं हैं । वो योद्धा, जो बड़े-बड़े संग्राम जीत लेते हैं, शत्रुओं के दांत खट्टे कर देते हैं, बलवान से बलवान दुश्मनों को परास्त कर देना जिनके बाएं हाथ का खेल है. 40
SR No.002495
Book TitleKaise Kare Is Man Ko Kabu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherGuru Amar Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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