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पिछले प्रवचन में हम चर्चा कर रहे थे कि - हमें बाणा ही नहीं बदलना ब्लकि बाण यानि आदत को भी बदलना है। क्यूंकि कहा है - 'बाणा बदले सौ-सौ बार, बाण बदले तो बेड़ा पार।'
प्रभु महावीर अपनी अमृत वाणी में फरमाते हैं कि- इस जीवात्मा ने इतनी बार साधु जीवन स्वीकार किया है कि यदि उन वस्त्र-पात्र-उपकरणों को एकत्र किया जाएं तो सुमेरू पर्वत से बड़ा ढेर बन जाए।
हो सकता है- आपको ये कल्पना लगे, लेकिन आप केवल शब्दों में मत उलझिए, आप इस बात के भावों को पकड़िए कि - सैंकड़ों क्या, हजारों बार ब्लकि अगर अध्यात्म शैली में कहें तो अनंत बार आप और हम साधु वेष धारण कर चुके हैं। तो प्रश्न उठता है - जब इतनी बार सन्यास मार्ग स्वीकार किया फिर भी कल्याण क्यूं न हुआ ? किसी कवि ने कहा है -
'तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोय। सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होय।।
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