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________________ 5 अधिकतर साधकों की ये शिकायत होती है कि- महाराज जब भी हम साधना करने लगते हैं, मंत्र - जाप करते हैं तो मन नहीं लगता, इसे कैसे काबू करें ? इसी समस्या का समाधान करते हुए जैन धर्म दिवाकर प्रवर्त्तक प्रवर श्री अमर मुनि जी महाराज अपने प्रवचनों में फरमाते हैं कि- तुम जो ये प्रश्न करते हो, ये कोई नया नहीं है। बहुत लम्बे समय से चला आ रहा है। अर्जुन ने भी श्री कृष्ण से यही प्रश्न पूछा था 'चंचलं ही मनः कृष्ण, प्रमाथि बलवद् दृढम् । तस्याहं निग्रहं मन्ये, वायोरिव सुदुष्करम् ।।' ये मन जो बंदर के समान चंचल है, हाथी के समान बलवान और दृढ है, जो आदमी को मथ देता है, जिसे वश करना वायु को पकड़ने के समान दुष्कर है। हे प्रभु! मैं इसे काबू करना चाहता हूँ, कैसे करूँ ? तब श्री कृष्ण ने कहा 'अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येन च गृहयते' यानि हे कुन्ती पुत्र ! इसे अभ्यास और वैराग्य से वश में करो। अब प्रश्न आता है कि-अभ्यास कैसा हो ? किसका हो ? क्यूंकि अभ्यास तो एक चोर भी करता है, जेबकतरा भी करता है, तो पहली बात आपका अभ्यास 24
SR No.002495
Book TitleKaise Kare Is Man Ko Kabu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherGuru Amar Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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