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'चन्दन चाबी एक है, है फेरन में फेर । बंद करे खोले यही, ताते सतगुरू हेर ।।'
यानि उन्होंने मन को चाबी की उपमा दी है। इस मन रूपी चाबी के द्वारा हम अच्छाईयों का ताला खोल भी सकते हैं और बुराईयों का द्वार बंद भी कर सकते हैं। इस ताले को सही ढंग से, ठीक तरीके से खोलने और बंद करने का रास्ता बताते हैं-गुरू। इसे समझने में एक प्रेरक प्रसंग उपयोगी होगा। आएँ पहले उसी की चर्चा कर लें
किसी गाँव के बाहर गुरू-चेला आकर ठहरे । चेला भिक्षा के लिए चला। जिस द्वार पे जाता, अलख जगाता, एक रटा रटाया वाक्य बोलता, 'राम नाम सत् है, जो बोले सो गत् है' ये क्रम चलता रहा। एक दिन जब उसने एक घर के बाहर अलख जगाई तो वहाँ दरवाजे पर पिंजरे में एक तोता लटका हुआ था ।
उसने कहा- महाराज ! आप कहते हो राम नाम सत् है, जो बोले सो गत् है । मैं तो सुबह से शाम तक राम-राम बोलता हूँ, मेरी तो गति हुई नहीं ? शिष्य ने सुना, सोचा बात तो यह ठीक कहता है। कहने लगा- भाई ! मैं कल • अपने गुरु जी से पूछ कर बताऊँगा ।
वापिस जंगल में गुरु के पास आया, सारी बात सुनाई, सुनकर गुरु जी गिर पड़े, जैसे बेहोश हो गए हों । शिष्य डर गया, पता नहीं गुरू जी को क्या हो गया ? पानी के छींटे डाले, होश आई, खाना खिलाया, संध्या-पूजा की, और सो गए। अगले दिन चेला फिर चला भिक्षा के लिए।
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