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[29] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्री
१८. जल्ल (मल) परीषह
किलिन्नगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा। प्रिंसु वा परितावेण, सायं नो परिदेवए॥ ३६॥ वेएज्ज निज्जरा-पेही, आरियं धम्मऽणुत्तरं।
जाव सरीरभेउ त्ति, जल्लं काएण धारए॥३७॥ ग्रीष्म ऋतु में पसीने से गीले शरीर पर धूल कण तथा मैल जम जाते हैं ऐसी स्थिति में भी मेधावी श्रमण साता-सुख के लिये विलाप न करे, व्याकुल न हो ॥ ३६॥
कर्म क्षय का इच्छुक मुनि मल जनित परीषह को सहन करे। इस श्रेष्ठ अनुत्तर धर्म को पाकर तत्त्वज्ञ मुनि जब तक शरीर न छूटे तब तक इस मैल को धारण करे। उसके प्रति जुगुप्सा न लाये, समभाव से सहन करे॥ ३७॥ 18. Jalla-parishaha (Dirt or slime related affliction)
In summer season dust particles and dirt stick to his body wet with sweat. Even in such condition a wise ascetic should not lament or get disturbed for want of comforts. (36)
An ascetic striving to destroy karmas should tolerate this slime related affliction. Endowed with the excellent peerless religion, the savant should carry the slime as long as his body lasts. He should not avoid any feelings of revulsion and bear it with equanimity. (37) , १९. सत्कार-पुरस्कार परीषह
अभिवायणमब्भुट्ठाणं, सामी कुज्जा निमन्तणं। जे ताई पडिसेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी॥३८॥ अणुक्कसाई अप्पिच्छे, अन्नाएसी अलोलुए।
रसेसु नाणुगिज्झेज्जा, नाणुतप्पेज्ज पन्नवं॥३९॥ राजा, शासक, नेता आदि जो अभिवादन, निमंत्रण, सम्मान आदि करते हैं तथा अन्य तीर्थिक साधु उन्हें स्वीकार करते हैं। लेकिन आत्मार्थी श्रमण ऐसे सत्कार की मन से भी इच्छा न करे ॥ ३८॥
मंदकषायी, अल्प इच्छा वाला और अज्ञात कुलों से भिक्षा ग्रहण करने वाला, रसादि में लोलुपता न रखने वाला बुद्धिमान श्रमण स्वादु रसों में आसक्ति न करे और (अन्यतीर्थिकों को सत्कार पाते देखकर) मन में किंचित् भी अनुताप न करे ॥ ३९॥ 19. Satkaar-puraskaar-parishaha (Affliction related to honour and prize) ____Kings, rulers, leaders and other such people extend greetings, invitations, honours and other adorations and monks of other creeds accept them. But a self-indulgent ascetic should not even have a desire for such laurels. (38)