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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वितीय अध्ययन [30]
A wise ascetic with dulled passions, few needs, getting alms from unknown families, no hankering for tasty things, should not submit to taste buds. He should also not have even slightest regret (when he sees monks of other creeds honoured). (39) २०. प्रज्ञा परीषह
से नूणं मए पुव्वं, कम्माणाणफला कडा। जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४०॥ अह पच्छा उइज्जन्ति, कम्माणाणफला कड़ा।
एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥४१॥ मैंने निश्चय ही पूर्वजन्म में ज्ञानावरणीय (अज्ञान रूप फल देने वाले) कर्म किये हैं, ऐसे कर्मों का बन्ध किया है; तभी तो किसी के द्वारा (जीवादि तत्त्वों के विषय में) कुछ भी पूछे जाने पर मैं कुछ उत्तर नहीं दे पाता ॥ ४० ॥
पूर्वकृत अज्ञान रूप फल देने वाले कर्मों (ज्ञानावरणीय-ज्ञान प्रतिबन्धक कर्म) का विपाक होता ही है-ऐसा जानकर अपनी आत्मा को आश्वासित करे॥ ४१ ॥ 20. Prajna-parishaha (Enlightenment related affliction)
'In the previous life or lives I have acquired bondage of knowledge-obscuring karmas. That is why I fail to reply questions (fundamentals including soul) posed by someone. (40)
‘Fruition of knowledge obscuring karmas acquired in the past is but natural, realizing thus, the ascetic should reassure his ownself (soul). (41) २१. अज्ञान परीषह
निरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो।
जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाण पावगं॥ ४२॥ तवोवहाणमादाय, पडिम पडिवज्जओ।
एवं पि विहरओ मे, छउमं न निय?ई ॥४३॥ मुनि ऐसा चिन्तन न करे कि 'मैंने व्यर्थ ही मैथुन आदि इन्द्रिय विषयों और सांसारिक भोगों का त्याग किया; क्योंकि मैं (अभी तक) यह नहीं जान पाता कि धर्म कल्याणकारी (श्रेय) है या पापकारी है'॥४२॥
मैं तप-उपधान आदि का पालन करता हूँ, विशिष्ट प्रतिमाओं को धारण करके भी विचरण करता हूँ; फिर भी मेरे ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का क्षय नहीं हुआ-साधक ऐसा भी निराशापूर्ण चिन्तन न करे॥ ४३ ॥ 21. Jnana-parishaha (Knowledge related affliction or ignorance)
An ascetic should not think that 'for nothing I have renounced lust and other mundane sensual pleasures because (till this day) I am unable to understand if religion is auspicious or inauspicious. (42)
तुसवुडो।