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[27] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
१४. याचना परीषह
दुक्कर खलु भो निच्चं, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं ॥ २८॥ गोयरग्गपविट्ठस्स, पाणी नो सुप्पसारए।
'सेओ अगार-वासु' त्ति, इइ भिक्खू न चिन्तए॥२९॥ अनगार भिक्षु की यह चर्या सदा से ही कठिन रही है कि उसके पास सभी कुछ याचित होता है, कुछ भी अयाचित नहीं होता ॥ २८॥
भिक्षाचर्या के लिये गृहस्थ के घर में प्रविष्ट साधु के लिये उसके समक्ष हाथ फैलाना सरल कार्य नहीं है। अतः भिक्षु यह न सोचे कि 'इससे तो गृहवास (घर में रहना) ही अच्छा है' ॥ २९॥ 14. Yaachana-parishaha (affliction related to alms-seeking)
For a homeless ascetic this has always been a tough part of ascetic-code that all he has is alms and nothing that is ungifted. (28)
For an ascetic, who has entered an abode to seek alms, it is not easy to spread his hands before the householder. At that time the ascetic should never think that to be a householder was better than this. (29) १५. अलाभ परीषह
परेसु घासमेसेज्जा, भोयणे परिणिट्ठिए। लद्धे पिण्डे अलद्धे वा, नाणुतप्पेज्ज संजए॥३०॥ 'अज्जेवाहं न लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया'।
जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो तं न तज्जए॥३१॥ जब गृहस्थों के घरों में भोजन तैयार हो जाये तब भिक्षु गोचरी हेतु जाय। गृहस्थों से थोड़ा आहार मिले अथवा न भी मिले तो भी भिक्षु खेद न करे ॥३०॥
आज मुझे आहार नहीं मिला तो संभव है कल मिल जाय। इस प्रकार से विचार करने वाले भिक्षु को अलाभ परीषह पीड़ित नहीं करता, वह अलाभ परीषह को विजित कर लेता है॥३१ ।। 15. Alaabh-parishaha (Affliction of non-attainment)
An ascetic should go to seek alms only at the time food is conventionally ready in abodes of householders. Even when he gets little quantity of food or not at all, the ascetic should not be displeased. (30)
'Today I could not get food, perhaps tomorrow I will get', an ascetic with this thought is not tormented by the affliction of non-attainment; he, in fact, wins over the affliction of non-attainment. (31)