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[561] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जो बहुत से आगमों के ज्ञाता (बहुश्रुत), समाधि (हृदय में सुख-शांति) उत्पन्न करने वाले तथा गुणग्राही होते हैं, वे अपने इन्हीं गुणों के कारण आलोचना सुनने के योग्य होते हैं॥ २६२॥
Those who are scholars of numerous canons, who are capable of infusing serenity and peace (in minds of others), and who are appreciative of virtues (of others), by virtue of these qualities they are worthy of listening to confessions. (262) कान्दी आदि अशुभ भावनाओं का स्वरूप
कन्दप्प-कोक्कुयाइं तह, सील-सहाव-हास-विगहाहिं।
विम्हावेन्तो य परं, कन्दप्पं भावणं कुणइ॥२६३॥ . जो कन्दर्प-कामवर्द्धक चर्चा-वार्ता, कौत्कुच्च-हास्य उत्पन्न करने वाली कुचेष्टाएँ, अपने आचरणवभाव-हास्य और विकथाओं से दसरों को विस्मित करता है-वह कान्दी भावना करता है॥ २६३ । Five ignoble feelings
One, who bewilders other persons with his lewd conversation; ribaldry, buffoonery; comical disposition, behaviour and gossip is said to have embraced kaandarpi (salacious) sentiment. (263)
मन्ता-जोगं काउं, भूईकम्मं च जे पउंजन्ति।
साय-रस-इड्ढिहेउं, अभिओगं भावणं कुणइ ॥२६४॥ जो (साधक) साता (मन एवं पंचेन्द्रिय विषय-सम्बन्धी सुख-सुविधा) रस (स्वादिष्ट रस) और ऋद्धि (समृद्धि, सिद्धि, प्रसिद्धि) के लिए मंत्र, योग (तंत्र-कुछ विशेष पदार्थों को मिलाकर किया जाने वाला) और भूतिकर्म (मंत्रित करके भस्म देना) का प्रयोग करता है. वह आभियोगिकी भावना का आचरण करता है॥ २६४॥
One (an aspirant), who employs mantra, yoga (tantra and other spells with the help of some special material and tools) and potentated ashes, in order to gain mental and sensual pleasures and comforts; wealth, fortune and fame; and to gratify taste-buds, is said to have embraced aabhiyogiki (intent of use of mantras, sorcery and black magic to influence and control people) sentiment. (264)
नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघ-साहूणं।
माई अवण्णवाई, किब्बिसियं भावणं कुणइ॥२६५॥ जो ज्ञान का, केवलज्ञानियों का, धर्माचार्यों का, संघ और साधुओं का अवर्णवाद (जो दोष उनमें नहीं है, उनका प्रक्षेप करके निन्दा करना) करता है, वह मायावी-कपटी किल्विषिकी भावना करता है॥ २६५॥
One who slanders and falsely accuses omniscients, preceptors, religious organization (sangh), ascetics and even wisdom is said to have embraced kilvishiki (slanderous) sentiment. (265)
अणुबद्धरोसपसरो, तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवी। एएहि कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणइ॥२६६॥