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[559 ] षट्त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
During following two years (in 9th and 10th year) he should observe Ekantar-tap (series of one day fast followed by one day of food intake) with intake of ayambil food (eating once in a day food cooked or roasted with a single ingredient even without any salt or other condiments). And then during the first six months of the eleventh year he should not observe rigorous austerities like three-day, four-day, five-day or more day fasts. (253)
तओ संवच्छरद्धं तु, विगिटुं तु तवं चरे।
परिमियं चेव आयामं, तंमि संवच्छरे करे॥२५४॥ तदुपरान्त छह मास तक विकृष्ट तप का आचरण करे। इस संपूर्ण वर्ष में परिमित-पारणे के दिन सीमित आचाम्ल (आयंबिल) करे। २५४॥
After that during the next six months of eleventh year, he should observe rigorous austerities. During this whole year on the days of food intake he should eat only ayambil food (eating once in a day food cooked or roasted with a single ingredient even without any salt or other condiments). (254)
कोडीसहियमायाम, कटु संवच्छरे मुणी।
. मासद्धमासिएणं तु, आहारेण तवं चरे॥२५५॥ (बारहवें वर्ष में) एक वर्ष तक कोटि सहित-लगातार आचाम्ल (आयंबिल) करके मुनि, पक्ष या मास के आहार से पाक्षिक अथवा मासिक-मासखमण का तप-अनशन करे॥ २५५॥
During the last twelfth) year, the ascetic should continuously observe austerity of alternative fasting and ayambil of fortnight or month long duration (month long fasting followed by month long eating of ayambil food etc.). (255) समाधिमरण में बाधक-साधक तत्व
. कन्दप्पमाभिओगं, किब्बिसियं मोहमासुरत्तं च।
एयाओ दुग्गईओ, मरणम्मि विराहिया होन्ति ॥२५६॥ ' पाँच प्रकार की भावनाएँ दुर्गति रूप हैं, दुर्गति में ले जाने वाली हैं। ये भावनाएँ हैं-(१) कान्दी, (२) आभियोगिकी, (३) किल्विषिकी, (४) मोही (सम्मोही), और (५) आसुरी। मरण के समय ये भावनाएँ संयम की विराधिका होती हैं। २५६ ॥ Supports and impediments of ultimate vow ____Five feelings lead to ignoble existence (rebirth). They are-(1) kaandarpi, (2) aabhiyogiki, (3) kilvishiki, (4) mohi (sammohi), and (5) aasuri (elaborated in verses 263-267). At the time of death, these feelings become obstructions to restraint. (256)
मिच्छादसणरत्ता, सनियाण हु हिंसगा।
इय जे मरन्ति जीवा, तेसिं पुण दुल्लहा बोही ॥२५७॥ जो जीव (मरण समय में) मिथ्यादर्शन में अनुरक्त, निदान सहित-निदान से युक्त और हिंसक (हिंसाभाव वाले) होते हैं-इन भावों में मरण करते हैं, उनके लिए पुनः बोधि-प्राप्ति दुर्लभ होती है॥ २५७॥