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[25] द्वितीय अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
१०. निषद्या परीषह
सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्ख-मूले व एगओ। अकुक्कुओ निसीएज्जा, न य वित्तासए परं॥ २०॥ तत्थ से चिट्ठमाणस्स, उवसग्गाभिधारए।
संका-भीओ न गच्छेज्जा, उठ्ठित्ता अन्नमासणं॥२१॥ श्मशान, सूने घर, तरुमूल में अकेला ही साधु अचपल होकर बैठे, किन्तु किसी प्राणी को किंचित् भी भयभीत न करे ॥२०॥
यदि उन स्थानों पर (ध्यानस्थ) बैठे साधु को किसी प्रकार का उपसर्ग (मनुष्य-देव-तिर्यंच सम्बन्धी) आ जाये तो उसे समभाव से धारण करे, सहे; अनिष्ट की शंका से भयभीत होकर उस स्थान से उठकर अन्यत्र न जाये ॥२१॥
10. Nishadya-parishaha (Accommodation related affliction)
At a funeral ground or a deserted house or under a tree an ascetic should sit unmoving and he should be careful not to cause even slightest fear to any other living being. (20)
"If sitting (in meditation) at such places he happens to face any affliction (caused by humans, divine beings or animals), he should endure the same with equanimity. He should not get up and move to some other place out of apprehension of any harm. (21)
- ११. शय्या परीषह
उच्चावयाहिं सेज्जाहिं, तवस्सी भिक्खु थामवं। नाइवेलं विहन्नेजा, पावदिट्ठी विहन्नई ॥२२॥ पइरिक्कुवस्सयं लद्ध, कल्लाणं अदु पावगं।
'किमेगरायं करिस्सइ', एवं तत्थऽहियासए ॥२३॥ ऊँची-नीची, अच्छी-बुरी शय्या (वसति-उपाश्रय-आश्रय स्थान) पाकर, सर्दी-गर्मी सहन करने में समर्थ तपस्वी भिक्षु हर्ष-खेद करके अपनी संयम मर्यादा का अतिक्रमण न करे। क्योंकि पापदृष्टि (अस्थिर चित्त) साधु ही (हर्ष-विषाद करके) मर्यादा का भंग करता है॥ २२ ॥ (अस्थिर चित्र)
मुनि को स्त्री-पशु-नपुंसक की बाधारहित अच्छा या बुरा-अनुकूल या प्रतिकूल जैसा भी स्थान मिल जाय, उसमें यह सोचकर रह ले कि एक रात में मेरा क्या बिगड़ जायेगा॥ २३ ॥ 11. Shayya-parishaha (Place of stay or accommodation related affliction)
An ascetic capable of tolerating heat and cold should not transgress the code of ascetic-discipline by getting pleased or displeased when he gets a higher, lower, good or bad bed (in a colony, ascetic-abode or other place of stay). This is because only an ascetic with sinful attitude (with wavering mind) transgresses the ascetic-code. (22)