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, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वितीय अध्ययन [24]
८. स्त्री परीषह
'संगो एस मणुस्साणं, जाओ लोगंमि इथिओ'। जस्स एया परिन्नाया, सुकडं तस्स सामण्णं ॥१६॥ एवमादाय मेहावी, 'पंकभूया उ इथिओ'।
नो ताहिं विणिहन्नेज्जा, चरेज्जऽत्तगवेसए॥१७॥ जो साधु ऐसा जानता है कि संसार में पुरुष के लिये स्त्रियाँ बंधन का बहुत ही प्रबल कारण हैं (उनके प्रति विरक्त-बुद्धि से) उस साधु का श्रमणत्व सफल हो जाता है॥ १६॥
'स्त्रियाँ ब्रह्मचारी के लिये दल-दल के समान हैं' इस तथ्य को भली भाँति जानकर मेधावी साधु उन (स्त्रियों) के द्वारा अपने संयम का घात न होने दे और सदा आत्मस्वरूप की गवेषणा करे॥१७॥
8. Stree-parishaha (Affliction related to opposite sex)
Accomplished is the asceticism of the ascetic who realizes that women are the most potent cause of bondage (karmic) to bind a man (thereby achieving apathy for them). (16)
'Women are like a quagmire for a celibate,' knowing this fact fully a wise ascetic should not allow them (the women) to damage his ascetic-discipline (samyam) and continue to explore the pristine form of self (soul). (17) ९. चर्या परीषह
एग एव चरे लाढे, अभिभूय परीसहे। गामे वा नगरे वावि, निगमे वा रायहाणिए॥१८॥ असमाणो चरे भिक्खू, नेव कुज्जा परिग्गह।
असंसत्तो गिहत्थेहिं, अणिएओ परिव्वए॥१९॥ ___ निर्दोषचर्या से विभूषित-प्रशंसित (लाढ) साधु परीषहों पर विजय प्राप्त करके ग्राम में, नगर में, व्यापारिक मंडी में, राजधानी आदि में अकेला ही विचरण करे ॥ १८॥ _ भिक्षु असाधारण (आम आदमी से अलग) होकर विचरण करे। परिग्रह नहीं करे, गृहस्थों के प्रति ममत्वभाव न रखे, उनसे अलिप्त रहे तथा अनिकेत गृह-बन्धनों से मुक्त होकर परिभ्रमण करे॥१९॥ 9. Charya-parishaha (Movement or wandering related affliction)
Endowed with faultless conduct an ascetic should win over afflictions and wander about in village, town, market place, capital city and other such places. (18)
An ascetic should be unusual in his movement (different from common man). He should remain itinerant avoiding possessions, being free from fondness for householders and having no attachment for a fixed abode. (19)