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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
षट्त्रिंश अध्ययन [ 552 ]
सव्वट्टसिद्धगा चेव, पंचहाऽणुत्तरा सुरा । इइ वेमाणिया देवा, णेगहा एवमायओ ॥ २१६ ॥
और (५) सर्वार्थसिद्धक - ये पाँच प्रकार के अनुत्तर (विमावासी) देव हैं। इस तरह वैमानिक देव अनेक प्रकार के कहे गये हैं॥ २१६ ॥
And Sarvarthasiddhak-these are five kinds of Anuttara celestial vehicular gods. Thus there are said to be many types of Vaimanik devas (celestial-vehicular gods). (216) लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे परिकित्तिया । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥ २१७ ॥
ये सभी (चारों निकायों के) देव लोक के एक देश (अंश या भाग) में कहे गये हैं। इससे आगे मैं चार प्रकार से अनेक कालविभाग को कहूँगा ॥ २१७ ॥
All these gods (of four realms) exist in a section of universe. Now I will describe fourfold division with regard to time of these divine beings. (217)
संत पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठि पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥ २९८ ॥
(ये चारों निकायों के देव) संतति - प्रवाह की अपेक्षा अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा सादि - सान्त भी होते हैं ॥ २९८ ॥
In context of continuity these (divine beings of all four realms) are beginningless and endless. However in context of existence at a particular place they have a beginning as well as end. (218)
साहियं सागरं एक्कं उक्कोसेण ठिई भवे । भोज्जाणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २१९ ॥
भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति कुछ अधिक एक सागरोपम की और जघन्य आयुस्थिति दस हजार वर्ष की होती है ॥ २१९ ॥
The maximum life-span of these Bhavanavasi devas is a little more than one Sagaropam and the minimum is ten thousand years. (219)
पलिओवमेगं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । वन्तराणं जहन्नेणं, दसवाससहस्सिया ॥ २२० ॥
व्यंतर देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक पल्योपम की तथा जघन्य आयुस्थिति दस हजार वर्ष की होती है॥ २२० ॥
The maximum life-span of these Vyantar devas is one Palyopam and the minimum is ten thousand years. (220)
पलिओवमं एगं तु, वासलक्खेण साहियं ।
पलिओम भागो, जोइसेसु जहन्निया ॥ २२१ ॥
ज्योतिष्क (ज्योतिषी) देवों की उत्कृष्ट आयुस्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की और जघन्य आयुस्थिति पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण होती है॥ २२१ ॥