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तर, सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचत्रिंश अध्ययन [502]
सोने और मिट्टी के ढेले को समान समझने वाला भिक्षु सुवर्ण और रजत (चाँदी) की मन से भी इच्छा न करे और सभी प्रकार की वस्तुओं के क्रय-विक्रय से विरक्त रहे॥ १३ ॥ 6. Sixth point : Negation of trading and code of alms-seeking
An ascetic, who finds gold and lump of clay alike, should not even think of having gold and silver, and should be apathetic to buying and selling. (13)
किणन्तो कइओ होइ, विक्किणन्तो य वाणिओ।
__ कयविक्कयम्मि वट्टन्तो, भिक्खू न भवइ तारिसो॥१४॥ वस्तु को खरीदने वाला क्रयिक (ग्राहक) और बेचने वाला (विक्रय करने वाला) वणिक् (व्यापारी) होता है। क्रय-विक्रय में प्रवृत्त भिक्षु तो (भिक्षु के लक्षणों से युक्त) भिक्षु ही नहीं होता ॥ १४ ॥
The seller and buyer of a thing is a merchant. An ascetic indulging in buying and selling is not an ascetic at all. (14)
भिक्खियव्वं न केयव्वं, भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा।
कयविक्कओ महादोसो, भिक्खावत्ती सुहावहा ॥१५॥ भिक्षु को भिक्षावृत्ति से भिक्षा करनी चाहिए। क्रय (विक्रय) नहीं करना चाहिए; क्योंकि क्रय-विक्रय महादोष है और भिक्षावृत्ति सुखावह (सुखदायी) है॥ १५॥
An ascetic should beg alms according to the code of alms seeking. He should not purchase or sell anything, because purchasing and selling is a great fault and to live on alms leads to happiness. (15)
समुयाणं उंछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिन्दियं।
लाभालाभम्मि संतुढे, पिण्डवायं चरे मुणी॥१६॥ मुनि सूत्र (में बताई गई) विधि से अनिन्दित सामुदायिक अनेक घरों से थोड़ी-थोड़ी भिक्षा की एषणा (खोज) करे और लाभ-अलाभ में सन्तुष्ट रहकर भिक्षा के लिए पर्यटन (पिण्डपात) करे॥१६॥
Following the prescribed code, an ascetic should look for alms in small quantities from many faultless houses of a colony. He should move about seeking alms and be contented irrespective of getting or not getting alms. (16) (७) सातवाँ सूत्र : स्वाद-वृत्ति निषेध
अलोले न रसे गिद्धे, जिव्भादन्ते अमुच्छिए।
न रसट्ठाए |जिज्जा, जवणट्ठाए महामुणी॥१७॥ अलोलुपी, रस (स्वाद) में अगृद्ध (आसक्त न होने वाला) जिह्वा (रसना) इन्द्रिय का दमन करने वाला (स्वाद में) मूछित-ममत्व, लालसा न रखने वाला महामुनि रस (स्वाद) के लिए न खाये, संयम यात्रा के निर्वाह हेतु भोजन करे ॥ १७ ॥