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[503 ] पंचत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ।
7. Seventh point : Negation of gourmandism
A great ascetic, who is not obsessed and infatuated with taste, who has subdued the sense of taste, who is free of fondness and desire for taste, should not eat food for taste. He should eat only in order to sustain his life and journey of ascetic discipline (८) आठवाँ सूत्र : पूजा-प्रतिष्ठा का निषेध
अच्चणं रयणं चेव, वन्दणं पूयणं तहा।
इड्डीसक्कार-सम्माणं, मणसा वि न पत्थए॥१८॥ अर्चना, रचना और वन्दना, पूजा तथा ऋद्धि, सत्कार, सम्मान आदि की मुनि मन से भी इच्छा न करे॥ १८॥ 8. Eighth point : Negation of worship and honour
Even in his thoughts an ascetic should not desire for offerings, facilities, salutations, worship, felicitation, respect, honour and the like. (18) (९) नौवाँ सूत्र : जीवन पर्यन्त मुनि-धर्म पालन
सुक्कज्झाणं झियाएज्जा, अणियाणे अकिंचणे।
वोसट्ठकाए विहरेज्जा, जाव कालस्स पज्जओ॥१९॥ जब तक काल का पर्याय है (जीवन है) तब तक मुनि शुक्लध्यान ध्याता रहे। निदानरहित, अकिंचन बनकर तथा काय का व्युत्सर्ग (ममत्व त्याग) करके विचरण करे॥ १९॥ 9. Ninth point: Observing the code for life
As long as he is alive, an ascetic should perform purest of meditation. Without any expectations of fruits of his practices) and possessions, he should move about dissociating his mind from his body. (19) फलश्रुति
निज्जूहिऊण आहारं, कालधम्मे उवट्ठिए।
अहिऊण माणुसं बोन्दिं, पहू दुक्खे विमुच्चई ॥२०॥ (अनगार मार्ग पर गति करने वाला मुनि) कालधर्म (मृत्यु) उपस्थित होने पर आहार का परित्याग करके मनुष्य-शरीर को छोड़कर तथा प्रभु बनकर दु:खों से विमुक्त हो जाता है॥ २०॥ The fruits
At the time of death he (the ascetic moving on the ascetic path) abandons food and then the earthly body to become supreme-soul and get free from all miseries. (20)
निम्ममो निरहंकारो, वीयरागो अणासवो। संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिणिव्वुए॥२१॥
-त्ति बेमि।