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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पंचत्रिंश अध्ययन [500]
मनोहर (चित्त को आकर्षित करने वाला), चित्रधर (स्त्रियों के चित्रों से युक्त घर-मकान), पुष्पमालाओं और धूप आदि सुगन्धित वस्तुओं से वासित, कपाट (किवाड़ों) से युक्त, सफेद चंदाबो (पर्दे आदि से सुसज्जित) गृह की मन से भी प्रार्थना-आकांक्षा न करे॥ ४॥ 3. Third point : Discipline of place
Even in his thoughts, an ascetic should not long for a lodge that is attractive decorated with paintings of women redolent with flower-garlands, incense and other aromatic things provided with doors and decorated with white canopies and curtains. (4)
इन्दियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसम्मि उवस्सए।'
दुक्कराई निवारेउं, कामरागविवड्डणे॥५॥ (क्योंकि) काम-राग की वृद्धि करने वाले उपाश्रय-निवास स्थान में भिक्षु के लिए इन्द्रियों का निवारण करना-रोकना दुष्कर है॥५॥
(This is because -) It is very difficult for an ascetic to control his senses in a lust enhancing dwelling (upashraya). (5)
सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व एगओ।
पइरिक्के परकडे वा, वासं तत्थऽभिरोयए॥६॥ (अतः) भिक्षु एकाकी होकर श्मशान में, सूने (एकान्त) घर में, वृक्ष के मूल में, परकृत (दूसरों द्वारा निर्मित मकान) मकान में, खाली स्थानों में निवास करने की अभिरुचि (इच्छा) करे॥६॥
Therefore an ascetic should think of a forlorn dwelling like cremation ground, deserted (lonely) house, hollow tree trunk, houses constructed by others or other isolated places. (6)
फासुयम्मि अणाबाहे, इत्थीहिं अणभिदुए।
तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए॥७॥ परम संयमी भिक्षु प्रासुक, बाधारहित, स्त्रियों के उपद्रव से रहित स्थान में निवास करने का संकल्प करे॥७॥
A highly restrained ascetic should resolve to live at a place that is free of faults, obstacles and disturbance by women. (7) (४) चतुर्थ सूत्र : गृह समारम्भ-निषेध
न सयं गिहाई कुज्जा, णेव अन्नेहिं कारए।
गिहकम्मसमारम्भे, भूयाणं दीसई वहो॥८॥ (संयमी साधक) न स्वयं गृह आदि का निर्माण करे और न किसी दूसरे से करवाये, क्योंकि गृह कर्म (निर्माण) के समारम्भ में भूतों (प्राणियों) की हिंसा देखी जाती है॥ ८॥ 4. Fourth point : Negation of dwelling related violence
He (a disciplined ascetic) should neither construct a house and the like by himself nor should he get it constructed by someone else because in the sinful activity of construction violence towards living beings is evident. (8)