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[499 ] पंचत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पणतीसइमं अज्झयणं : अणगारमण्गगई पंचत्रिंश अध्ययन : अनगार-मार्ग-गति Chapter-35 : ENDEAVOUR ON THE PATH OF
HOMELESS-ASCETICISM
सुणेह मेगग्गमणा, मग्गं बुद्धेहि देसियं।
जमायरन्तो भिक्खू, दुक्खाणऽन्तकरो भवे॥१॥ . मन (चित्त) को एकाग्र करके, बुद्धों (तीर्थंकरों) द्वारा उपदिष्ट मार्ग को मुझसे सुनो; जिसका आचरण करने वाला भिक्षु दुःखों का अन्त करने वाला होता है॥१॥
Hear attentively from me the path propagated by the enlightened ones (Tirthankars). The ascetic who follows that path puts an end to all his miseries. (1) (१) प्रथम सूत्र : सर्वसंग परित्याग
गिहवासं परिच्चज्ज, पवज्जंअस्सिओ मुणी।
इमे संगे वियाणिज्जा, जेहिं सज्जन्ति माणवा ॥२॥ गृहवास का परित्याग करके प्रव्रज्या के आश्रित हुआ (मुनि धर्म स्वीकार किया हुआ) मुनि इन संगों को भली प्रकार जान ले, जिनमें मानव आसक्त होते हैं॥२॥ 1. First point : Renounce all affiliations
The ascetic who has renounced household and got initiated into ascetic order should know well (and renounce) the affiliations to which men is deeply attached. (2) (२) द्वितीय सूत्र : पापासवों का सम्पूर्ण त्याग
तहेव हिंसं अलियं, चोज्ज अबम्भसेवणं।
इच्छाकामं च लोभं च, संजओ परिवज्जए॥३॥ इसी तरह संयमी सांधक हिंसा, अलीक-असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य का सेवन-मैथुन, इच्छाकाम (अप्राप्त वस्तु की इच्छा) और लोभ (प्राप्त वस्तु के प्रति ममता-गृद्धि) का परित्याग करे॥३॥ 2. Second point : Renounce completely the sources of demerits
In the same way a restrained ascetic should renounce violence, untruth (aleek), stealing, non-celibacy (carnal pleasures), desire for possessions (ichchhakama) and greed. (3) (३) द्वितीय सूत्र : स्थान-विवेक
मणोहरं चित्तहरं, मल्लधूवेण वासियं। सकवाडं पण्डुरुल्लोयं, मणसा वि न पत्थए॥४॥