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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयस्त्रिंश अध्ययन [ 472]
Status determining karma is of two types-(i) high, and (ii) low. The two have eight sub-classes each. (14)
दाणे लाभे य भोगे य, उवभोगे वीरिए तहा । पंचविहमन्तरायं, समासेण वियाहियं ॥ १५ ॥
(१) दानान्तराय, (२) लाभान्तराय, (३) भोगान्तराय, (४) उपभोगान्तराय, और ( ५ ) वीर्यान्तराय-संक्षेप से अन्तराय कर्म के ये पाँच प्रकार बताये गये हैं ॥ १५॥
Power hindering karma is said to be of five kinds - (i) charity hindering, (ii) gain hindering, (iii) momentary enjoyment hindering, (iv) continued enjoyment hindering, and (v) potency hindering. (15)
कर्मों के प्रदेशाग्र (द्रव्य), क्षेत्र, काल और भाव
एयाओ मूलपयडीओ, उत्तराओ य आहिया । पसग्गं खेत्तकाले य, भावं चादुत्तरं सुण ॥ १६॥
कर्मों की ये मूल और उत्तर प्रकृतियाँ बताई गई हैं। (अब) उनके प्रदेशाग्र (द्रव्य), क्षेत्र, काल, भाव भी सुनो ॥ १६ ॥
These are said to be the primary and auxiliary divisions (characteristics) of karmas. Now listen to their matter (dravya) or particle (pradeshagra), area (kshetra ), time (kaal) and mode (baahva) related aspects. ( 16 )
सव्वेसिं चेव कम्माणं, पएसग्गमणन्तगं । गण्ठिय-सत्ताईयं, अन्तो सिद्धाण आहियं ॥ १७॥
एक समय में (एक आत्मा द्वारा बद्ध-ग्राह्य होने वाले) सभी कर्मों के प्रदेशाग्र ( कर्म - परमाणु पुद्गल दलिक का परिमाण) अनन्त है। (यह अनन्त परिमाण) ग्रन्थिक सत्वातीत ( जिन्होंने गन्थि भेद नहीं किया है ऐसे अभव्य जीवों) से अनन्त गुणा अधिक तथा सिद्धों के अन्तर्वर्ती-अनन्तवें भाग जितने कहे गये हैं ॥ १७॥
The number of ultimate particles (paramanus) of all karmas (bound by one soul) in one Samaya (the ultimate fraction of time) is infinite. This (infinite number) is infinite times more than the number of souls that are beyond breaking the bondage (the ignoble souls that are never to be liberated; abhavya), and infinite fraction of the number of the liberated souls (Siddhas). ( 17 )
सव्वजीवाण कम्मं तु संगहे छद्दिसागयं । सव्वेसु वि पएसेसु, सव्वं सव्वेण बद्धगं॥ १८॥
सभी जीव छह दिशाओं में रहे कर्मों (कार्मण वर्गणा के पुद्गलों) का संग्रहण करते हैं। वे सभी कर्म पुद्गल आत्मा के सभी प्रदेशों के साथ सर्व प्रकार से बद्ध- आश्लिष्ट हो जाते हैं ॥ १८ ॥
All the souls acquire karmas (ultimate particles of karmic class) existing in six cardinal directions around them. All these karmas assimilate or fuse with all the sections (pradeshas) in every possible way. (18)