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र सांत्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयस्त्रिंश अध्ययन [470]
Sub-classes (uttara prakritis) of karmas
Knowledge obscuring karma is of five kinds - (i) shruta jnanavaraniya (scriptural knowledge obscuring), (ii) abhinibodhik jnanavaraniya or mati-jnanavaraniya (sensory knowledge obscuring), (iii) avadhi-jnanavaraniya (obscuring extrasensory perception of the physical dimension), (iv) manahparyav jnanavaraniya (obscuring extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of other beings), and (v) keval-jnanavaraniya (omniscience obscuring). (4)
निद्दा तहेव पयला, निहानिद्दा य पयलपयला य। तत्तो य थीणगिद्धी उ, पंचमा होइ नायव्वा॥५॥ चक्खुमचक्खु-ओहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे।
एवं तु नवविगप्पं, नायव्वं दसणावरणं॥६॥ (१) निद्रा, (२) प्रचला, (३) निद्रा-निद्रा, (४) प्रचला-प्रचला, तथा (५) स्त्यानगृद्धि (स्त्यानर्द्धि)-॥५॥
(६) चक्षुदर्शनावरणीय, (७) अचक्षुदर्शनावरणीय, (८) अवधिदर्शनावरणीय, और (९) केवलदर्शनावरणीय, ये ९ विकल्प (भेद) दर्शनावरणीय कर्म के जानने चाहिये॥६॥
Perception obscuring karma is of nine kinds-(i) nidra (sleep), (ii) prachala (dozing while sitting), (iii) nidra-nidra (deep sleep), (iv) prachala-prachala (sleeping even while walking), and (v) styaangriddhi (very deep sleep conducive to sleep walking),- (5)
(vi) chakshu-darshanavaraniya (visual perception obscuring), (vii) achakshudarshanavaraniya (non-visual perception obscuring), (viii) avadhi-darshanavaraniya (extra-sensory perception obscuring), and (ix) keval-darshanavaraniya (ultimate perception obscuring). (6)
वेयणीयं पि य दुविहं, सायमसायं च आहियं।
सायस्स उ बहू भेया, एमेव असायस्स वि॥७॥ वेदनीय कर्म दो प्रकार का है-(१) सात (साता) वेदनीय, और (२) असात-असाता वेदनीय। सातवेदनीय के बहुत भेद हैं और उसी प्रकार असातवेदनीय के भी बहुत भेद हैं॥७॥
Emotion evoking karma is of two kinds-(i) evoking emotion of pleasure, and (ii) evoking emotion of pain. There are many sub-classes of both. (7)
मोहणिज्जं पि दुविहं, दंसणे चरणे तहा।
दंसणं तिविहं वुत्तं, चरणे दुविहं भवे॥८॥ मोहनीय कर्म भी दो प्रकार. का है-(१) दर्शनमोहनीय, और (२) चारित्रमोहनीय। दर्शनमोहनीय के तीन भेद कहे गये हैं और चारित्रमोहनीय दो प्रकार का होता है॥ ८॥
Deluding karma is of two kinds-(i) perception/faith deluding, and (ii) conduct deluding. Faith deluding karma is sub-divided into three classes and conduct deluding into two. (8)