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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयस्त्रिंश अध्ययन [ 468]
तेत्तीसइमं अज्झयणं : कम्मपयडी त्रयस्त्रिंश अध्ययन : कर्म-प्रकृति
Chapter-33 : THE NATURE OF KARMAS
अट्ठ कम्माइं वोच्छामि, आणुपुव्विं जहक्कमं । जेहिं बद्धो अयं जीवो, संसारे परिवत्तए॥ १ ॥
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मैं आनुपूर्वी और यथाक्रम से आठ कर्मों का प्रतिपादन करता हूँ, जिन ( कर्मों) से बँधा हुआ यह जीव (चतुर्गतिरूप) संसार में पर्यटन करता है ॥ १ ॥
I now explain in sequential order eight types of karmas, tethered by which this soul wanders in this world of cycles of rebirth (in four realms). (1)
कर्मों की मूल प्रकृतियाँ
नाणस्सावरणिज्जं, दंसणावरणं तहा। वेयणिज्जं तहा मोहं, आउकम्मं तहेव य ॥ २ ॥ नामकम्मं च गोयं च अन्तरायं तहेव य ।
एवमेयाइ कम्माई, अद्वेव उ समासओ ॥ ३ ॥
ज्ञान को आवरण करने वाला ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय और वेदनीय कर्म तथा मोहनीय कर्म, इसी प्रकार आयुकर्म - ॥ २ ॥
नाम कर्म, गोत्र कर्म तथा अन्तराय कर्म - इस प्रकार ये कर्म संक्षेप में आठ ही हैं ॥ ३ ॥
The primary divisions (mula prakritis) of karmas
Jnanavaraniya (knowledge obscuring), Darshanavaraniya (perception/faith obscuring karma), Vedaniya ( emotion evoking karma), Mohaniya ( deluding karma), Ayushya (life-span determining karma), – (2)
Naam (body type determining karma), Gotra (status determining karma) and Antaraya (power hindering karma). Briefly these are eight karmas (main division of karmas). Thus in brief these are the eight classes of karmas. (3)
आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ
नाणावरणं पंचविहं, सुयं आभिणिबोहियं ।
ओहिनाणं तइयं, मणनाणं च केवलं ॥ ४ ॥
ज्ञानावरणीय कर्म पाँच प्रकार का है - (१) श्रुतज्ञानावरणीय, (२) आभिनिबोधिक ज्ञानावरणीय (मतिज्ञानावरणीय), (३) अवधिज्ञानावरणीय, (४) मनोज्ञानावरणीय (मनः पर्यव ज्ञानावरणीय), , और (५) केवलज्ञानावरणीय ॥ ४ ॥