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An सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वात्रिंश अध्ययन [460]
भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्यायणे रक्खणसन्निओगे।
वए विओगे य कहिं सुहं से ?, संभोगकाले य अतित्तिलाभे॥१३॥ (प्रिय) भावों में अनुरक्ति और परिग्रहण में ममत्व होने के कारण मानव उनका उत्पादन, रक्षण और सन्नियोग करता है किन्तु उनका व्यय और वियोग भी होता है। इन सब में सुख कहाँ है? उनका उपभोग करते समय भी उसे अतृप्ति ही प्राप्त होती है॥ ९३ ।।
How can a man derive happiness on account of love and fondness for pleasant feelings while he creates, protects, associates (trades and exchanges), expends and loses the same (things that enhance pleasant feelings). Even when be enjoys them he feels unsatisfied, does not ever experience satiety. (93)
भावे अतित्ते य परिग्गहे य, सत्तोवसत्तो न उवेई तुढेिं।
अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ॥९४॥ भाव में अतृप्त और परिग्रह में अत्यधिक आसक्त व्यक्ति को संतुष्टि नहीं होती। असंतुष्टि के दोष से दु:खी और लोभग्रस्त होकर वह दूसरे का बिना दिया हुआ पदार्थ ग्रहण कर लेता है, अदत्तादान का आचरण करता है॥ ९४॥
A person, not satiated with pleasant feelings and intensely obsessed with acquiring that, never gains satisfaction. Aggrieved with the drawback of discontentment and overwrought by greed, such person takes belongings of others without being given (steals). (94)
तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य।
मायामुसं वड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से॥९५॥ वह तृष्णा से अभिभूत (पराजित) होकर चोरी करता है और भाव-परिग्रहण में अतृप्त होता है। अतृप्ति-लोभ दोष के कारण उसका माया-मृषा (छल सहित झूठ बोलने की प्रवृत्ति) बढ़ जाता है; (किन्तु) माया-मृषा से भी उसकी दुःख से मुक्ति नहीं होती-दुःख नहीं मिटता ॥ ९५ ॥
Overwhelmed by craving, the thief of others' belongings, not satiated with pleasant feelings and possessions finds that his deceit and lies continue to multiply due to his vice of greed; however, he still (in spite of employing deceit and lie) fails to be emancipated from miseries. (95)
मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरन्ते।
एवं अदत्ताणि समाययन्तो, भावे अतित्तो दुहिणो अणिस्सो॥९६॥ झूठ बोलने के बाद, बोलने से पहले और बोलते समय भी वह दुःखी होता है। उसका पर्यवसान . भी दुःखपूर्ण होता है। इस तरह भाव में अतृप्त होकर चोरी करता हुआ वह दु:खी और अनाश्रित हो जाता है॥ ९६॥
He becomes sorrowful before, after and even while telling a lie and the consequences of the act too are painful. Thus the person indulging in theft and also not satiated with pleasant feelings, becomes miserable and without refuge. (96)