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[439] द्वात्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
An austerity practicing Shraman, desirous of serenity, should wish for limited and allowed food, seek for a knowledgeable and wise assistant and look for lonely place; unfrequented by women, animals and neuters (or hermaphrodites, or) for living. (4)
न वा लभेज्जा निउणं सहायं, गुणाहियं वा गुणओ समं वा।
एक्को वि पावाइ विवज्जयन्तो, विहरेज्ज कामेसु असज्जमाणो॥५॥ यदि निपुण सहायक, अपने से अधिक गुणों वाला अथवा समान गुण वाला सहायक न प्राप्त हो सके तो पापों को वर्जित करता हुआ और कामभोगों में अनासक्त रहता हुआ अकेला-एकाकी ही विचरण करे॥५॥
If an expert assistant or a better or equally virtuous one is not available then he should wander alone avoiding sins and getting detached from worldly pleasures. (5)
जहा य अण्डप्पभवा बलागा, अण्डं बलागप्पभवं जहा य।
एमेव मोहाययणं खु तण्हा, मोहं च तण्हाययणं वयन्ति॥६॥ - जैसे बगुली (बलाका) अण्डे से उत्पन्न होती है और अण्डा बगुली से उत्पन्न होता है, वैसे ही मोह का आयतन (घर-जन्मस्थान) तृष्णा है और तृष्णा का आयतन (घर-जन्मस्थान) मोह को कहा गया है॥६॥
As a crane is produced from egg and egg is produced from crane, in the same way the origin of delusion is said to be craving and that of craving is said to be delusion. (6)
रागो य दोसो वि य कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति।
कम्मं च जाई-मरणस्स मूलं, दुक्खं च जाई-मरणं वयन्ति ॥७॥ राग और द्वेष ये दोनों कर्म के बीज हैं और कर्म को मोह से उत्पन्न हुआ कहा गया है तथा कर्म ही जन्म-मरण का मल है और जन्म-मरण को ही द:ख कहा गया है॥७॥
Attachment and aversion both are the seeds of karmas and karma is said to have its origin in delusion (moha); also karma alone is at the root of (cycles of) birth and death, and birth and death are said to be misery. (7)
दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो, मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा।
तण्हा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हओ जस्स न किंचणाइं॥८॥ जिसको मोह नहीं होता उसका दु:ख नष्ट हो जाता है, जिसको तृष्णा नहीं होती उसका मोह नष्ट हो जाता है, तृष्णा के समाप्त हो जाने पर लोभ विनष्ट हो जाता है और जिसका लोभ नष्ट हो जाता है उसके पास कुछ नहीं रहता, वह अकिंचन हो जाता है॥ ८॥
One who is free of delusion gets rid of misery; one who is free of cravings gets rid of delusion; when craving ends greed is destroyed; and one who is rid of greed has nothing left; he becomes free of possessions. (8)
रागं च दोसं च तहेव मोहं, उद्धत्तुकामेण समूलजालं। जे जे उवाया पडिवज्जियव्वा, ते कित्तइस्सामि अहाणुपुव्विं ॥९॥