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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वात्रिंश अध्ययन [440]
जो राग और द्वेष तथा उसी प्रकार मोह को मूल सहित उखाड़ने की इच्छा करने वाला है उसे जिस-जिस प्रकार के उपाय करने-अपनाने चाहिये उन (उपायों) का मैं अनुक्रम से (क्रमश:) कथन करूँगा॥ ९॥
For him who wants to uproot attachment, aversion as well as delusion, I shall explain in due order all those means that he must adopt. (9)
रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं।
दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी॥१०॥ रसों का अधिक सेवन न करें; क्योंकि रस प्रायः उन्माद बढ़ाने वाले अथवा कामोद्दीपन करने वाले होते हैं और (उद्दीप्त मानव को) विषय-भोग (काम) उसी प्रकार उत्पीड़ित करते हैं जिस प्रकार स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष को पक्षी करते हैं॥ १०॥
He should not take tasty food in excessive quantity; because tasty food generally increases excitement or lust, and a lustful person is tormented by carnal desires exactly like a tree laden with tasty fruits is assaulted by birds. (10)
जहा दवग्गी पउरिन्धणे वणे, समारुओ नोवसमं उवेइ।
एविन्दियग्गी वि पगामभोइणो, न बम्भयारिस्स हियाय कस्सई॥११॥ जिस प्रकार प्रचुर ईंधन वाले जंगल में प्रचण्ड पवन के साथ लगी हुई दावाग्नि किसी उपाय से शांत नहीं होती उसी प्रकार अति मात्रा में अथवा अपनी इच्छानुकूल भोजन करने वाले (पगामं भोजी) की इन्द्रियाग्नि (इन्द्रियों में उत्पन्न हुई काम-वासना की अग्नि) भी किसी भी उपाय से शान्त नहीं होती, अत: ब्रह्मचारी के लिए (प्रकाम भोजन) किसी भी प्रकार से हितकारी नहीं होता ॥ ११ ॥
As a conflagration fanned by strong wind in a dense forest having abundant fuel cannot be extinguished by any means, in the same way the fire of senses (senses caught in fire of lust) in a person who eats food in excess and as much he desires, cannot be extinguished by any means. Therefore excess of tasty food in no way benefits a celibate. (11)
विवित्तसेज्जासणजन्तियाणं, ओमासणाणं दमिइन्दियाणं।
न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ बाहिरिवोसहेहिं ॥१२॥ जो विविक्त (स्त्री-पशु-नपुंसक से रहित) शय्या और आसन से नियंत्रित (नियमबद्ध) है, जो अल्प आहार करने वाला है, जिसने अपनी इन्द्रियों का दमन कर लिया है, उसके चित्त को राग-द्वेष रूपी शत्रु उसी प्रकार पराभूत नहीं कर सकते जिस प्रकार औषधियों से पराजित (समाप्त) की हुई व्याधि पुनः रोगी को आक्रान्त नहीं कर सकती॥ १२॥
One who is bound by the code of using unspoiled bed and seat (lodging unfrequented by women, neuters and beasts), who takes little or limited food, and who has subdued his senses; his mind cannot be subjugated by foes that are attachment and aversion in the same way as an ailment cured by medicines cannot torment a patient again. (12)
जहा बिरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था। एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बम्भयारिस्स खमो निवासो॥१३॥