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र सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वात्रिंश अध्ययन [ 438]
बत्तीसइमं अज्झयणं : पमायट्ठाणं द्वात्रिंश अध्ययन : प्रमाद-स्थान Chapter-32 : THE AREAS OF STUPOR
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अच्चन्तकालस्स समूलगस्स, सव्वस्स दुक्खस्स उजो पमोक्खो।
तं भासओ मे पडिपुण्णचित्ता, सुणेह एगंतहियं हियत्थं ॥१॥ अत्यन्त (अनन्त तथा अनादि) काल के सभी दुःखों तथा उनके मूल कारणों से जो प्रमोक्ष (मुक्त) करने वाला है उसको मैं कहता हूँ, प्रतिपूर्ण (पूरे) मन से सुनो; (क्योंकि यह) एकान्त (पूर्ण रूप से) हित रूप है और कल्याण के लिए (कल्याणकारी) है॥ १॥
Listen with complete attention what I say about that which liberates from all miseries of all times (endless and without beginning) and their root causes; for it is exclusively beneficial and meant for beatitude. (1)
नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अन्नाण-मोहस्स विवज्जणाए।
रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥२॥ सम्पूर्ण ज्ञान के प्रगट होने से, अज्ञान-मोह के विवर्जन (परिहार) से तथा राग और द्वेष के सर्वथा क्षय (नष्ट होने) से जीव एकान्त सुख रूप (सुख स्थान) मोक्ष को प्राप्त करता है॥ २॥
The soul (living being) attains liberation that is the abode of ultimate bliss through manifestation of all encompassing (right) knowledge, removal of ignorance (delusion) and complete destruction of attachment and aversion. (2)
तस्सेस मग्गो गुरु-विद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा।
सज्झाय-एगन्तनिसेवणा य, सुत्तऽत्थसंचिन्तणया धिई य॥३॥ उस (दुःखों से मुक्ति और सुख-प्राप्ति) का यह मार्ग है-(१) गुरुजनों और वृद्धों की सेवा-शुश्रूषा करना, (२) बाल (अज्ञानी) जनों से दूर रहना, (३) स्वाध्याय तथा एकान्त सेवन, (४) सूत्र और उसके अर्थ का चिन्तन तथा धैर्य धारण किये रहना ॥३॥
For that (freedom from miseries and attaining bliss) this is the way-1. to serve the seniors and the elderly, 2. to keep a distance from ignorant people, 3. to undertake self-study and to revel in solitude, and 4. to ponder over the text (scriptures) and its meaning and be patient (in this pursuit). (3)
आहारमिच्छे मियमेसणिज्जं, सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धिं।
निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्गं, समाहिकामे समणे तवस्सी॥४॥ समाधि की कामना (इच्छा) करने वाला तपस्वी श्रमण परिमित और एषणीय आहार की इच्छा करे. अर्थ (तत्व और अर्थ) में निपण बद्धि वाले सहायक की इच्छा करे और स्त्री-पश-नपुंसक से विविक्तरहित-एकान्त योग (वियोग-जोग्गं) स्थान में रहने की इच्छा करे॥ ४॥