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________________ [429] एकत्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ज्ञाताधर्मकथा के १९ अध्ययन - (देखें ज्ञातासूत्र ) बीस असमाधिस्थान - (देखें समवायांग २०) इक्कीस शबल दोष - ( दशाश्रुतस्कन्ध, दशा २ ) बाईस परीषह - (देखिये, उत्तराध्ययन का दूसरा परीषह अध्ययन ) गाथा १६ - सूत्रकृतांगसूत्र के २३ अध्ययन उक्त तेईस अध्ययनों के कथानानुसार संयमी जीवन न होना, दोष है। चौबीस देव - यहाँ रूप का अर्थ एक है। अतः पूर्वोक्त तेईस संख्या में एक अधिक मिलाने से रूपाधिक का अर्थ २४ होता है। चौबीस प्रकार के देव १० असुरकुमार आदि दशभवनपति, ८ भूत-यक्ष आदि आठ व्यन्तर, ५ सूर्य-चन्द्र आदि पाँच ज्योतिष्क और एक वैमानिक देव- इस प्रकार कुल चौबीस जाति के देव हैं। इनकी प्रशंसा करना भोग - जीवन की प्रशंसा करना है और निन्दा करना द्वेषभाव है। अतः मुमुक्षु को तटस्थ भाव ही रखना चाहिये। समवायांग में २४ देवों से २४ तीर्थंकरों को ग्रहण किया गया है। पाँच महाव्रतों की २५ भावनायें - ( विस्तार के लिये देखें भावना योग आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी) दशाश्रुत आदि तीनों सूत्रों के २६ उद्देशन काल दशाश्रुतस्कन्धसूत्र के दश उद्देश, बृहत्कल्प के छह उद्देश और व्यवहारसूत्र के दश उद्देश - इस प्रकार तीनों के छब्बीस उद्देश होते हैं। जिस श्रुतस्कन्ध या अध्ययन के जितने उद्देश होते हैं उतने ही वहाँ उद्देशन काल अर्थात् श्रुतोपचार रूप उद्देशावसर होते हैं। एक दिन में जितने श्रुत की वाचना ( अध्यापन) दी जाती है उसे एक उद्देशन काल कहा जाता है। सत्ताईस अनगार के गुण - (देखें समवायांग २७) (१-५) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह रूप पाँच महाव्रतों का सम्यक् पालन करना । (६) रात्रि - भोजन का त्याग करना, (७-११) पाँचों इन्द्रियों को वश में रखना, (१२) भाव सत्य-अन्त:करण की शुद्धि, (१३) करण सत्य - वस्त्र पात्र आदि की भली-भाँति प्रतिलेखना करना, (१४) क्षमा, (१५) विरागता - लोभनिग्रह, (१६) मन की शुभ प्रवृत्ति, (१७) वचन की शुभ प्रवृत्ति, (१८) काय की शुभ प्रवृत्ति, (१९-२४) छह काय के जीवों की रक्षा, (२५) संयम - योगयुक्तता, (२६) वेदनाऽभिसहन - तितिक्षा अर्थात् शीत आदि से सम्बंन्धित कष्टसहिष्णुता, (२७) मारणान्तिकाऽभिसहन - मारणान्तिक कष्ट को भी समभाव से सहना। उक्त गुण आचार्य हरिभद्र ने आवश्यकसूत्र की शिष्यहिता वृत्ति में बताये हैं । समवायांगसूत्र कुछ भिन्नता है। में गाथा १८ - अट्ठाईस आचार प्रकल्प ( आचारांगसूत्र के २५ अध्ययन तथा निशीथ के तीन अध्ययन ) गाथा १९ - पापश्रुत के २९ भेद (१) भौम-भूमिकम्प आदि का फल बताने वाला शास्त्र, (२) उत्पात रुधिर वृष्टि, दिशाओं का लाल होना इत्यादि का शुभाशुभ फल बताने वाला निमित्त शास्त्र, (३) स्वप्नशास्त्र, (४) अन्तरिक्ष- आकाश में होने वाले ग्रहवेध आदि का वर्णन करने वाला शास्त्र, (५) अंग शास्त्र - शरीर के स्पन्दन आदि का फल
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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