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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पाँच क्रियायें - (१) कायिकी, (२) आधिकरणिकी- शस्त्रादि अधिकरण से सम्बन्धित, (३) प्राद्वेषिकी - द्वेष रूप, (४) पारितापनिकी, (५) प्राणातिपात - प्राणिहिंसा ।
सात पिण्ड और अवग्रह की प्रतिमायें
पिण्ड का अर्थ आहार है।
[427] एकत्रिंश अध्ययन
अवग्रह (स्थान) आहार ग्रहण करने में स्थान सम्बन्धी अभिग्रह (संकल्प) करना ।
इनका वर्णन स्थानांगसूत्र ७ में देखें ।
सात भय
१. इहलोक भय - अपनी ही जाति के प्राणी से डरना, इहलोक भय है। जैसे मनुष्य का मनुष्य से, तिर्यंच का तिर्यंच आदि से डरना ।
२. परलोक भय - दूसरी जाति वाले प्राणी से डरना, परलोक भय है। जैसे मनुष्य का देव से या तिर्यंच आदि से डरना ।
३. आदान भय - अपनी वस्तु की रक्षा के लिये चोर आदि से डरना ।
४. अकस्मात् भय - किसी बाह्य निमित्त के बिना अपने आप ही सशंक होकर रात्रि आदि में अचानक डरने लगना ।
५. आजीव भय - दुर्भिक्ष आदि में जीवन यात्रा के लिये भोजन आदि की अप्राप्ति के दुर्विकल्प से
डरना ।
६. मरण भय - मृत्यु से डरना ।
७. अश्लोक भय - अपयश की आशंका से डरना। (स्थानांग ७)
आठ मद स्थान
१. जाति मद - ऊँची और श्रेष्ठ जाति का अभिमान ।
२. कुल मद - ऊँचे कुल का अभिमान ।
३. बल मद - अपने बल का घमण्ड ।
४. रूप मद - अपने रूप, सौन्दर्य का गर्व ।
५. तप मद - उग्र तपस्वी होने का अभिमान ।
६. श्रुत मद - शास्त्राभ्यास अर्थात् पाण्डित्य का अभिमान ।
७. लाभ मद - अभीष्ट वस्तु के मिल जाने पर अपने लाभ का अहंकार ।
८. ऐश्वर्य मद - अपने ऐश्वर्य अर्थात् प्रभुत्व का अहंकार । ( स्थानांग ८)
नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति
इनके लिये इसी सूत्र का १६वाँ अध्ययन देखें।
दस श्रमण धर्म
१. क्षान्ति - क्रोध न करना ।
२. मार्दव - मृदु भाव रखना । जाति, कुल आदि का अहंकार न करना।
३. आर्जव - ऋजुभाव- सरलता रखना, माया न करना ।
४. मुक्ति - निर्लोभता रखना, लोभ न करना ।