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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकत्रिंश अध्ययन [426]
जो भिक्षु सिद्धों के (इकत्तीस प्रकार के) गुणों, (बत्तीस प्रकार के) योग संग्रहों तथा तेतीस प्रकार की आशातना में सदैव यतनावान रहता है, वह संसार में नहीं रहता॥ २०॥
The ascetic who is always careful about virtues of the perfected ones (thirty-one), noble associations (thirty-two kinds of noble associations of mind-speech-body) and thirty-three types of transgressions (ashaatana) does not stay in the cycle. (20)
इइ एएसु ठाणेसु, जे भिक्खू जयई सया। खिप्पं से सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिओ॥२१॥
-त्ति बेमि। इस प्रकार जो पण्डित (तत्त्ववेत्ता-सद्सद्विवेकी) भिक्षु इन स्थानों में सदा यतना रखता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से विमुक्त हो जाता है॥ २१॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Thus the sagacious ascetic who is always careful about the aforesaid themes soon gets liberated from the whole cycle of rebirths (samsaar). (21)
-So I say.
- विशेष स्पष्टीकरण तीन दण्ड-दुष्प्रवृत्ति में संलग्न मन, वचन और काया-तीनों दण्ड हैं। इनसे चारित्ररूप ऐश्वर्य का तिरस्कार होता है, आत्मा दण्डित होता है।
तीन गौरव-(१) ऋद्धि गौरव-ऐश्वर्य का अभिमान, (२) रस गौरव-रसों का अभिमान, (३) सात गौरव-सुखों का अभिमान।
गौरव अभिमान से उत्तप्त हुए चित्त की एक विकृत स्थिति है।
तीन शल्य-(१) माया, (२) निदान-ऐहिक तथा पारलौकिक भौतिक सुख की प्राप्ति के लिये धर्म का विनिमय, (३) मिथ्यादर्शन-आत्मा का तत्वों के प्रति मिथ्यारूप दृष्टिकोण।
शल्य काँटे या शस्त्र की नोंक को कहते हैं। जैसे वह पीड़ा देता है, उसी प्रकार साधक को ये शल्य भी निरन्तर उत्पीड़ित करते हैं। (वृहद्वृत्ति)
चार विकथा-(१) स्त्री कथा-स्त्री के रूप, लावण्य आदि का वर्णन करना, (२) भक्त कथा-नाना प्रकार के भोजन की कथा, (३) देश कथा-नाना देशों के रहन-सहन आदि की कथा, (४) राज कथा-राजाओं के ऐश्वर्य तथा भोगविलास का वर्णन। (स्थानांग ४)
चार संज्ञा-संज्ञा का अर्थ है-आसक्ति और मूर्च्छना। (स्थानांग ४) (१) आहार संज्ञा, (२) भय संज्ञा, (३) मैथुन संज्ञा, और (४) लोभ संज्ञा। पाँच व्रत-अहिंसा आदि पाँच व्रत हैं। . पाँच इन्द्रियाँ-शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श-ये पाँच इन्द्रियों के विषय हैं।