________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जो भिक्षु (आठ) मदस्थानों में, (नौ प्रकार की ) ब्रह्मचर्य गुत्तियों में और दस प्रकार के भिक्षु धर्मों (श्रमण धर्मों) से सदा यतनाशील (उपयोगयुक्त) रहता है, वह संसार में नहीं रुकता ॥ १० ॥
एकत्रिंश अध्ययन [ 424 ]
The ascetic who is always careful (in exerting) about (eight types of) conceits, (nine types of) celibacy related restraints, and ten types of ascetic-codes does not stay in the cycle.
उवासगाणं पडिमासु, भिक्खूणं पडिमासु य । भिक्खू जई निच्च, से न अच्छइ मण्डले ॥ ११ ॥
"
जो भिक्षु उपासकों (श्रमणोपासकों) की (ग्यारह ) प्रतिमाओं और भिक्षु (साधु की बारह) प्रतिमाओं में सदा (उपयोगवान) यतनाशील रहता है, वह संसार में नहीं रहता ॥ ११ ॥
The ascetic who is always careful (in observing) about householder's special practices (eleven shravak-pratimas), special practices of ascetics (twelve bhikshupratimas) does not stay in the cycle. ( 11 )
किरियासु भूयगामेसु, परमाहम्मिएसु यः। भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १२ ॥
जो भिक्षु (तेरह) क्रियाओं में, (चौदह प्रकार के) भूतग्रामों (जीव समूहों) और (पन्द्रह प्रकार के) परमाधार्मिक देवों में सदा यतनाशील (उपयोगवान) रहता है, वह संसार में नहीं रुकता ॥ १२ ॥
The ascetic who is always careful about thirteen types of activities, fourteen kinds of groups of living beings and fifteen kinds of extremely irreligious deities does not stay in the cycle. (12)
गाहासोलसएहिं,
य।
तहा असंजमम्मि भिक्खू जई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १३ ॥
जो भिक्षु गाथा षोडशक (सूत्रकृतांग के सोलह अध्ययन) और (सत्रह प्रकार के) असंयम में सदा (उपयोगयुक्त) यतनावान रहता है, वह संसार में नहीं रुकता ॥ १३॥
The ascetic who is always careful about the sixteen chapters (the set of 16 chapters of Sutrakritanga Sutra about ascetics) and indiscipline (seventeen kinds) does not stay in the cycle. (13)
बम्भम्मि नायज्झयणेसु, ठाणेसु य ऽसमाहिए । जे भिक्खू जयई निच्च, से न अच्छइ मण्डले ॥ १४॥
जो भिक्षु (अठारह प्रकार के) ब्रह्मचर्य, (उन्नीस प्रकार के ) ज्ञातासूत्र के अध्ययन तथा (बीस प्रकार के) असमाधिस्थानों में सदा यतनाशील (उपयोगवान) रहता है, वह संसार में नहीं रुकता ॥ १४ ॥
The ascetic who is always careful about celibacy (eighteen types), chapters of Jnata Sutra (nineteen) and causes of non-serenity (twenty ) does not stay in the cycle. (14) गवीसाए सबलेसु, बावीसाए परीसहे । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मण्डले ॥ १५ ॥