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________________ in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र त्रिंश अध्ययन [416] गाथा १९-भिक्षाचरी के छह भेद इस प्रकार हैं (१) पेटा-अर्थात् पेटिका। पेटिका चतुष्कोण होती है। इस प्रकार बीच के घरों को छोड़कर चारों श्रेणियों में भिक्षा लेना। (२) अर्ध-पेटा-इसमें केवल दो श्रेणियों से भिक्षा ली जाती है। (३) गोमूत्रिका-वक्र अर्थात् टेढ़े-मेढ़े भ्रमण से भिक्षा लेना गोमूत्रिका है। जैसे-चलते बैल के मूत्र की रेखा टेढ़ी-मेढ़ी होती है। (४) पतंगवीथिका-पंतग जैसे उड़ता हुआ बीच में कहीं-कहीं चमकता है, इसी प्रकार बीच-बीच में घरों को छोड़ते हुए भिक्षा लेना। (५) शम्बूकावर्ता-शंख के आवर्तों की तरह गाँव के बाहरी भाग से भिक्षा लेते हुए अन्दर में जाना अथवा गाँव के अन्दर से भिक्षा लेते हुए बाहर की ओर आना। शम्बूकावर्ता के ये दो प्रकार हैं। (६) आयतंगत्या-प्रत्यागता-गाँव की सीधी सरल गली में अन्तिम घर तक जाकर फिर लौटते हुए भिक्षा लेना। इसके भी दो भेद हैं-जाते समय गली की एक पंक्ति से और आते समय दूसरी पंक्ति से भिक्षा लेना। अथवा एक ही पंक्ति से भिक्षा लेना, दूसरी पंक्ति से नहीं। अर्द्ध गोमूत्रिका पेटा पेटा ___ आयतंगत्वा-प्रत्यागता - - - - - - - शंबूकावर्ता - पतंगवीथिका गाथा ३१-प्रायश्चित्त के १० भेद इस प्रकार हैं(१) आलोचनाई-गुरु के समक्ष अपने दोषों को प्रकट करना आलोचना है। (२) प्रतिक्रमणार्ह-कृत पापों से निवृत्त होने के लिये “मिच्छामि दुक्कडं" कहना। (३) तदुभयारी-पापनिवृत्ति के लिये आलोचना और प्रतिक्रमण-दोनों करना। (४) विवेकार्ह-लाये हुए अशुद्ध आहार आदि का परित्याग करना। (५) व्युत्सर्गार्ह-चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति के साथ कायोत्सर्ग करना। (६) तपार्ह-उपवास आदि तप करना। (७) छेदाह-संयमकाल को छेदकर कम करना, दीक्षा काट देना। (८) मूलार्ह-फिर से महाव्रतों में आरोपित करना, नई दीक्षा देना। (९) अनवस्थापनार्ह-तपस्यापूर्वक नई दीक्षा देना।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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