________________
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
विशेष स्पष्टीकरण
गाथा ७ - बाह्य तप-निम्न कारणों से इसे बाह्य तप कहा जाता है- (१) अनशन आदि मुक्ति की प्राप्ति में बहिरंग निमित्त है । (२) शरीर आदि बाह्य द्रव्य पर आधारित हैं। (३) यह अन्तरंग तप के माध्यम से ही मुक्ति का कारण है, स्वयं साक्षात् कारण नहीं ।
अन्तरंग तप - इसके विपरीत जो शरीर आदि बाह्य साधनों पर आधारित नहीं है, अन्तःकरण से स्वयं स्फूर्त है, जो विशिष्ट विवेकी साधकों द्वारा ही समाचारित है, वह ध्यान आदि अन्तरंग तप है।
गाथा १०-११–इत्वरिक अनशन तप देश, काल, परिस्थिति आदि को ध्यान में रखते हुए अपनी शक्ति के अनुसार एक अमुक समय विशेष की सीमा बाँधकर किया जाता है। भगवान महावीर के शासन में दो घड़ी से लेकर उत्कृष्ट छह मास तक की सीमा है। संक्षेप में इसके छह भेद होते हैं-..
(१) श्रेणि तप-उपवास से लेकर छह मास तक क्रमपूर्वक जो तप किया जाता है, वह श्रेणि तप है। इसकी अनेक श्रेणियाँ हैं। जैसे-उपवास, बेला - यह दो पदों का श्रेणि तप है । उपवास, बेला, तेला, चौला - यह चार पदों का श्रेणि तप है।
त्रिंश अध्ययन [ 414]
(२) प्रतर तप - एक श्रेणि तप को जितने क्रम अर्थात् प्रकारों से किया जा सकता हैं, उन सब क्रमों को मिलाने से प्रतर तप होता है। उदाहरणस्वरूप - १, २, ३, ४ संख्यक उपवासों से चार प्रकार बनते हैं। स्थापना इस प्रकार है
क्रम
१
२
३
४
१
उपवास
बेला
तेला
चौला
२
बेला
तेला
चौला
उपवास
३
तेला
चौला
उपवास
बेला
४
चौला
उपवास
बेला
तेला
यह प्रतर तप है। इसमें कुल पदों की संख्या १६ है । इस तरह यह तप श्रेणि पदों को श्रेणि पदों से. गुणा करने से बनता है। चार को चार से गुणित करने पर १६ की संख्या उपलब्ध होती है। यह आयाम और विस्तार दोनों में समान है।
(३) घन तप-जितने पदों की श्रेणि हो, प्रतरं तप को उतने पदों से गुणित करने पर घन तप बनता है। जैसे कि ऊपर में चार पदों की श्रेणि है, अतः उपर्युक्त षोडशपदात्मक तप को चतुष्टयात्मक श्रेणि से गुणा करने पर अर्थात् प्रतर तप को चार बार करने से घन तप होता है। इस प्रकार घन तप के ६४ पद होते हैं।
(४) वर्ग तप - घन को घन से गुणित करने पर वर्ग तप बनता है। अर्थात् घन तप को ६४ बार गुणा करने से वर्ग तप बनता है। इस प्रकार वर्ग तप के ६४ x ६४ = ४,०९६ पद अर्थात् चार हजार छियाणवे पद हैं।
(५) वर्ग-वर्ग तप - वर्ग को वर्ग से गुणित करने पर वर्ग वर्ग तप होता है। अर्थात् वर्ग तप को ४,०९६ बार गुणा करने से १ करोड़ ६७ लाख ७७ हजार २१६ पद होते हैं। उक्त पद अंकों में इस प्रकार है - ४,०९६ × ४,०९६ = १,६७,७७,२१६
यह श्रेणि तप के चार पदों की भावना है। इसी प्रकार पाँच, छह, सात आदि पदों की भावना भी की जा सकती है।