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[413 ] त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
1. Giving or taking lessons (vaachana), 2. questioning the teacher (prichchhana), 3. revision or repetition (parivartana), 4. pondering or ruminating (anupreksha), and 5. religious discourse (dharmakatha)-these are five limbs of austerity of self-study (swadhyaya). (34)
अट्टरुदाणि वज्जित्ता, झाएज्जा सुसमाहिए।
धम्मसुक्काई झाणाई, झाणं तं तु बुहा वए॥३५॥ आर्त और रौद्र (ध्यान) को वर्जित कर (छोड़कर) सुसमाहित साधु धर्म और शुक्लध्यान को ध्याता है, वह बुद्धिमानों द्वारा ध्यान तप कहा जाता है॥ ३५ ॥
A disciplined ascetic abandons mental states of anxiety (aart-dhyan) and malice (raudra-dhyan) embraces mental states of piety (dharma-dhyan) and purity (shukladhyan). The wise call it austerity of meditation (dhyan). (35)
सयणासण-ठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे।
कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तिओ॥३६॥ शयन (सोने), बैठने तथा खड़े होने में जो भिक्षु व्यर्थ का काय-व्यापार (काय-चेष्टा) नहीं करता; वह शरीर का व्युत्सर्ग-व्युत्सर्ग नाम का छठा (आभ्यन्तर) तप कहा गया है॥ ३६॥
While sleeping (lying), sitting and standing, the ascetic who avoids any extraneous movement of the body is said to be observing the sixth (internal) austerity of dissociation (vyutsarg). (36)
एयं तवं तु दुविहं, जे सम्म आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पण्डिए॥ ३७॥
-त्ति बेमि। जो पण्डित (तत्त्ववेत्ता-मेधावी) मुनि, इन दोनों प्रकार के तपों का सम्यक्तया आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार (द्रव्य और भाव संसार) से विमुक्त हो जाता है॥ ३७॥
__ -ऐसा मैं कहता हूँ। The wise and talented ascetic, who immaculately practices the two aforesaid kinds of austerities, soon gets liberated from this whole world (material and emotional). (37)
-Sol say.