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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रिंश अध्ययन [412]
संक्षेप में बहिरंग (बाह्य) तपों को कहा गया है। अब क्रमशः आभ्यन्तर तपों को कहूँगा॥ २९ ॥
Briefly, these are external austerities. Now I will describe internal austerities in due order. (29)
पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। .
झाणं च विउस्सग्गो, एसो अब्भिन्तरो तवो॥३०॥ (१) प्रायश्चित्त, (२) विनय, (३) वैयावृत्य, (४) स्वाध्याय, (५) ध्यान, और (६) व्युत्सर्ग-ये छह आभ्यन्तर तप हैं॥ ३०॥
1. Atonement (prayashchitta), 2. modesty (vinaya), 3. service to others (vaiyavritya), 4. self-study (swadhyaya), 5. meditation (dhyan), and 6. dissociation (from the mundane; vyutsarga) – these six are internal austerities. (30)
आलोयणारिहाईयं, पायच्छित्तं तु दसविहं।
जे भिक्खू वहई सम्मं, पायच्छित्तं तमाहियं ॥ ३१॥ आलोचनाह (आलोचना के योग्य) आदि दस प्रकार का प्रायश्चित्त तप है, जिसका भिक्षु सम्यक् रूप से वहन (पालन) करता है, वह प्रायश्चित्त तप कहा जाता है॥ ३१॥ .
The austerity of atonement (matters needing atonement) is of ten types, which an ascetic observes immaculately. This observation is called austerity of atonement. (31)
अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं।
गुरुभत्ति-भावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ॥३२॥ खड़े होना, हाथ जोड़ना, आसन देना, गुरुजनों की भक्ति तथा भाव सहित शुश्रूषा (सेवा करना) . विनय तप है॥ ३२॥
To get up from seat, join palms, offer seat, to serve seniors sincerely with devotion is austerity of modesty. (32)
आयरियमाइयम्मि य, वेयावच्चम्मि दसविहे।
आसेवणं जहाथामं, वेयावच्चं तमाहियं ॥३३॥ आचार्य आदि से सम्बन्धित दस प्रकार का वैयावृत्य है। उसका यथाशक्ति (अपनी शक्ति के अनुसार) आसेवन (आचरण) करना वैयावृत्य तप है॥ ३३॥
There are ten kinds of services to others aimed at acharya (preceptor and head of the order) and other members of the group. To perform them to the best of one's ability is austerity of service to others. (33)
वायणा पुच्छणा चेव, तहेव परियट्टणा।
अणुप्पेहा धम्मकहा, सज्झाओ पंचहा भवे॥३४॥ (१) वाचना, (२) पृच्छना, (३) परिवर्तना, (४) अनुप्रेक्षा, और (५) धर्मकक्षा-यह पाँच प्रकार का स्वाध्याय तप है॥ ३४॥