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[411] त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in
दव्वे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उ जे भावा।
एएहि ओमचरओ, पज्जवचरओ भवे भिक्खू॥२४॥ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में जो भाव (पर्याय) कहे गये हैं, उन सब भावों (पर्यायों) से भिक्षाचर्या करने वाले भिक्षु के पर्याय ऊनोदरी तप (पज्जवचर) होता है॥ २४ ॥
An ascetic who follows all the aforesaid modes of substance, place, time and sentiment should be known as the one observing the austerity of eating less than appetite in context of modes. (24) .
अट्टविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा।
अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया॥ २५॥ आठ प्रकार के गोचराग्र, सात प्रकार की एषणाएँ तथा अन्य अनेक प्रकार के अभिग्रह भिक्षाचर्या तप कहे गये हैं ॥ २५ ॥
Eight kinds of principal ways of alms collection (gocharaagra), seven types of explorations for alms (eshana) and many other resolves are said to be included in austerity of alms-seeking. (25)
खीर-दहि-सप्पिमाई, पणीयं पाणभोयणं।
___ परिवज्जणं रसाणं तु, भणियं रसविवज्जणं॥२६॥ दूध, दही, घी तथा प्रणीत (पौष्टिक) पान-भोजन (आहार) एवं रसों का वर्जन (परित्याग) रस-परित्याग तप कहा गया है॥ २६॥
Renouncing intake of milk, curd, butter-oil (ghee) and other nourishing and tasty • food is called austerity of renouncing taste (dainty food). (26)
ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा।
उग्गा जहा धरिज्जन्ति, कायकिलेसं तमाहियं ॥ २७॥ आत्मा के लिए सुखकारी वीरासन आदि उग्र आसनों को धारण करने को-अभ्यास करने को काय-क्लेश तप कहा गया है॥ २७॥
Practice of different difficult postures, including Virasana, that are beneficial for soul is called austerity of body-mortification. (27)
एगन्तमणावाए, इत्थी पसुविवज्जिए।
सयणासणसेवणया, विवित्तसयणासणं॥२८॥ एकान्त, अनापात (लोगों के आवागमन से रहित) और स्त्री तथा पशु (नपुंसक भी) आदि से विवर्जित (रहित) शयन एवं आसन का आसेवन (ग्रहण) करना, विविक्त शयन-आसन (प्रतिसंलीनता) तप है॥ २८॥
Accepting use of lonely, unfrequented by people and free of women and animals (eunuchs also) bed and seats (lodgings) is austerity of reclusive living (samlinata). (28)
एसो बाहिरंग तवो, समासेण वियाहिओ। अन्भिन्तरं तवं एत्तो, वुच्छामि अणुपुव्वसो॥२९॥