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[409] त्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
In brief the austerity of eating less than appetite (abstinence) is of five kinds with respect to-1. substance (dravya), 2. place (kshetra), 3. time (kaal), 4. sentiment or resolve (bhaava), and 5. modes (paryaaya). (14)
जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे।
जहन्नेणेगसित्थाई, एवं दव्वेण ऊ भवे॥१५॥ जिसका जितना आहार है; उससे कम-से-कम (जघन्य) एक सिक्थ (एक कण अथवा एक ग्रास) कम भोजन करना, द्रव्य से अवमौदर्य-ऊनोदरी तप है॥१५॥
To take at least one grain or morsel less than one's full meal or appetite is austerity of eating less than appetite in context of substance. (15)
गामे नगरे तह रायहाणि, निगमे य आगरे पल्ली।
खेडे कब्बड-दोणमुह, पट्टण-मडम्ब-संबाहे॥१६॥ ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मडंब (मण्डप) संबाध- ॥ १६॥
(From places like -) village (gram), city (nagar), capital (rajadhani), trade center (nigam), settlement near a mine (aakar), village of thieves (palli), kraal (khet), market (karbat), hamlet (dronmukh), harbour (pattan), borough (madamb), settlement in a valley (samvah),- (16)
आसमपए विहारे, सन्निवेसे समाय-घोसे य।
थंलि-सेणाखन्धारे, सत्थे संवट्ट कोट्टे य॥१७॥ आश्रम पद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिविर, सार्थ, संवर्त, कोट- ॥१७॥
Hermitage (ashram), hostel (vihaar), temporary settlement (sannivesh), assembly (samaaj), settlement of cowherds (ghos), settlement on high ground (sthali), army camp (sainya-shivir), caravan (saarth), relief camp (samvart), fortified place (koat)-(17)
वाडेसु व रच्छासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं।
कप्पइ उ एवमाई, एवं खेत्तेण ऊ भवे॥१८॥ वाड, रथ्या (गली) और घर-इन क्षेत्रों में तथा इस प्रकार के दूसरे क्षेत्रों में निर्धारित (कल्पित) क्षेत्र प्रमाण के अनुसार भिक्षा के लिए जाना क्षेत्र से 'ऊनोदरी' तप होता है॥ १८॥
Fence (vaad), lanes (rathya), house (ghar), to select one or more places and go to seek alms from places so predetermined is austerity of eating less than appetite in context of place. (18)
पेडा य अद्धपेडा, गोमुत्ति पयंगवीहिया चेव।
सम्बुक्कावट्टा ऽऽययगन्तुं, पच्चागया छट्ठा ॥१९॥ अथवा (१) पेटा, (२) अर्द्ध-पेटा, (३) गोमूत्रिका, (४) पतंगवीथिका, (५) शम्बूकावर्ता, और (६) आयतंगत्वा-(प्रत्यागता)- यह छह प्रकार का क्षेत्र से ऊनोदरी तप है।॥ १९ ॥