________________
[397] एकोनत्रिंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्री
(उत्तर) क्रोध-विजय से जीव को शान्ति (क्षमाभाव) की प्राप्ति होती है। क्रोध-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता और पूर्वबद्ध कर्म की निर्जरा हो जाती है।
Maxim 68 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by conquering anger (krodh-vijaya)?
(A). By conquering anger a being attains forgiveness. He does not acquire bondage of karmas responsible for experiencing pain due to anger (krodh-vedaniya karma) and sheds such karmas accumulated in the past.
सूत्र ६९-माणविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? माणविजएणं मद्दवं जणयइ, माणवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥ सूत्र ६९-(प्रश्न) भगवन् ! मान-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) मान-विजय से जीव मृदुता (कोमलता-नम्रता) को प्राप्त करता है। मान-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 69 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by conquering conceit (maan-vijaya)?
(A). By conquering conceit a being attains sweetness (modesty). He does not acquire bondage of karmas responsible for experiencing pain due to conceit (maan-vedaniya karma) and sheds such karmas accumulated in the past.
सूत्र ७०-मायाविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? . मायाविजएणं उज्जुभावं जणयइ, मायावेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥
सूत्र ७०-(प्रश्न) भगवन् ! माया-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) माया-विजय से जीव को ऋजुभाव (सरलता) की प्राप्ति होती है। माया-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं होता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा होती है।
Maxim 70 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by conquering deceit (maya-vijaya)?
(A). By conquering deceit a being attains simplicity. He does not acquire bondage of karmas responsible for experiencing pain due to deceit (maaya-vedaniya karma) and sheds such karmas accumulated in the past.
सूत्र ७१-लोभविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? लोभविजएणं संतोसीभावं जणयइ, लोभवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥ सूत्र ७१-(प्रश्न) भगवन् ! लोभ-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) लोभ-विजय से जीव को संतोष-भाव प्राप्त होता है। लोभ-वेदनीय कर्म नहीं बँधता और पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा होती है।
Maxim 71 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by conquering greed (lobh-vijaya)?