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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [398]
(A). By conquering greed a being attains contentment. He does not acquire bondage of karmas responsible for experiencing pain due to greed (lobha-vedaniya karma) and sheds such karmas accumulated in the past.
सूत्र ७२-पेज्ज-दोस-मिच्छादसण-विजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
पेज्ज-दोस-मिच्छादंसणविजएणं नाण-दसण-चरित्ताराहणयाए अब्भुढेइ। अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगण्ठिविमोयणयाए तप्पढमयाए जहाणुपुब्बिं अट्ठवीसइविहं मोहणिज्जं कम्मं उग्घाएइ, पंचविहं नाणावरणिज्जं, नवविहं दंसणावरणिज्जं, पंचविहं अन्तरायं-एए तिन्नि वि कम्मसे जुगवं खवेइ। तओ पच्छा अणुत्तरं, अणंतं, कसिणं, पडिपुण्णं, निरावरणे, वितिमिरं, विसुद्धं, लोगालोगप्पभावगं, केवल-वरनाणदंसणं समुप्पाडेइ।
जाव सजोगी भवइ ताव य इरियावहियं कम्मं बन्धइ सुहफरिसं, दुसमयठिड्यं। तं पढ़मसमए बद्धं, बिइयसमए वेइयं, तइयसमए निज्जिण्णं।
तं बद्धं, पुठं, उदीरियं, वेइयं, निज्जिण्णं सेयाले य अकम्मं चावि भवड़॥
सूत्र ७२-(प्रश्न) भगवन् ! प्रेय (राग), द्वेष और मिथ्यादर्शन पर विजय पाने से जीव को क्या प्राप्त होता है? __(उत्तर) प्रेय, द्वेष और मिथ्यादर्शन पर विजय प्राप्त करने से जीव ज्ञान-दर्शन और चारित्र की आराधना के लिए उद्यत होता है। आठ प्रकार के कर्मों की कर्मग्रन्थी को खोलने (विमोचन करने) के लिए उनमें से सर्वप्रथम अनुक्रम से अट्ठाईस प्रकार के मोहनीय कर्म का घात (क्षय) करता है एवं पाँच प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म का, नौ प्रकार के दर्शनावरणीय कर्म का, पाँच प्रकार के अन्तराय कर्म का-इन तीनों कर्मों के अंश (कर्मांशों) का एक साथ (युगपत्) क्षय कर देता है। तदनन्तर अनुत्तर (प्रधान-सर्वश्रेष्ठ), अनन्त, सर्ववस्तु को विषय करने वाला, संपूर्ण (कसिणं), प्रतिपूर्ण, निरावरण (आवरणरहित), अन्धकार (अज्ञान अन्धकार) से रहित (वितिमिरं), विशुद्ध, लोकालोक प्रकाशक केवल (सहायरहित) एवं श्रेष्ठ (वर) ज्ञानदर्शन को प्राप्त कर लेता है।
जब तक वह सयोगी (मन-वचन-काय योग सहित) रहता है तब तक ईर्यापथिक कर्म-क्रिया का बन्ध करता है (परन्तु उस कर्मबन्ध का) स्पर्श सुख (सातावेदनीय रूप शुभ कर्म) रूप होता है, उसकी स्थिति दो समय की होती है। वह प्रथम समय में बँधता है, द्वितीय समय में वेदन किया जाता है-उसका उदय होता है और तृतीय समय में उसकी निर्जरा हो जाती है।
वह कर्म (क्रमशः) बद्ध होता है, स्पृष्ट होता है, उदय में आता है, वेदन किया (भोगा) जाता है और निर्जरित हो जाता है फिर आगामी काल में (अन्त में) अकर्म हो जाता है।
Maxim 72 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by conquering love-aversion-wrong belief (preya-dvesh-mithyadarshan-vijaya)?
(A). By conquering love (attachment), aversion and wrong belief, a being exerts to gain right knowledge-faith-conduct. In order to open the knots of eight types of karmas he proceeds to destroy them in proper sequence. First of all he destroys twenty eight types of deluding karma (mohaniya karma). He then proceeds to destroy in one go all