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In सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [396]
(उत्तर) घ्राण इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों (सुगन्ध और दुर्गन्ध) पर होने वाले राग-द्वेष का निग्रह हो जाता है और फिर वह तन्निमित्तक (गंध से होने वाले) कर्मों को नहीं बाँधता, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 65 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by subduing the sense-organ of smell (ghraan-indriya-nigraha)?
(A). By subduing the sense-organ of smell a being subdues the attachment and aversion for pleasant and unpleasant smells. Then he stops acquiring bondage of karmas caused by that and sheds the karmas accumulated in the past.
सूत्र ६६-जिब्भिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किंजणयइ ?
जिब्भिन्दियनिग्गहेणं मणुनामणुन्नेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणइय, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥
सूत्र ६६-(प्रश्न) भगवन् ! जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ-अमनोज्ञ रसों में होने वाले राग-द्वेष का निग्रह हो जाता है और फिर वह तन्निमित्तक (रसों के प्रति होने वाले राग-द्वेष के कारण) कर्मों का बन्ध नहीं करता तथा पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 66 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by subduing the sense-organ of taste (jihva-indriya-nigraha)?
(A). By subduing the sense-organ of taste a being subdues the attachment and aversion for pleasant and unpleasant tastes. Then he stops acquiring bondage of karmas caused by that and sheds the karmas accumulated in the past.
सूत्र ६७-फासिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किंजणयइ ?
फासिन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु फासेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥
सूत्र ६७-(प्रश्न) भगवन् ! स्पर्शेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है? .
(उत्तर) स्पर्शेन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ (सुखद और दुःखद) स्पर्शों पर होने वाले राग-द्वेष का निग्रह होता है और फिर वह तन्निमित्तक कर्मों का बन्धन नहीं करता; पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 67 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by subduing the sense-organ of touch (sparsh-indriya-nigraha)?
(A). By subduing the sense-organ of touch a being subdues the attachment and aversion for pleasant and unpleasant touch. Then he stops acquiring bondage of karmas caused by that and sheds the karmas accumulated in the past.
सूत्र ६८-कोहविजएणं णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कोहविजएणं खन्तिं जणयइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥ सूत्र ६८-(प्रश्न) भगवन् ! क्रोधविजय से जीव को क्या प्राप्त होता है?