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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
Maxim 62 (Q). Bhante ! What does a jiva (soul/living being) obtain by possessing right-conduct (chaaritra-sampannata)?
[395] एकोनत्रिंश अध्ययन
(A). By possessing right-conduct a being attains the rock-like state of stability (shaileshi bhaava). Reaching this state the ascetic destroys the remnants of karmas clinging even to an omniscient. After that he becomes perfect (Siddha), enlightened (Buddha ), liberated (mukta), gains nirvana and ends all miseries.
सूत्र ६३ - सोइन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
सोइन्दियनिग्गहेणं मणुन्नामणुन्नेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
सूत्र ६३ - ( प्रश्न) भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ (कर्णप्रिय) अमनोज्ञ (कर्ण कटु) शब्दों पर राग-द्वेष का निग्रह कर लेता है । फिर वह तन्निमित्तक - शब्दों से होने वाले कर्मों का बन्ध नहीं करता अपितु पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 63 (Q). Bhante ! What does a jiva (soul/living being) obtain by subduing the sense-organ of hearing (Shrotra- indriya-nigraha ) ?
(A). By subduing the sense-organ of hearing a being subdues the attachment and aversion for pleasant and unpleasant sounds. Then he stops acquiring bondage of karmas caused by that and sheds the karmas accumulated in the past.
सूत्र ६४ - चक्खिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
चक्खिन्दिय निग्गणं मणुन्नामणुन्नेसु रूवेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
सूत्र ६४ - ( प्रश्न) भगवन् ! चक्षु इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?
(उत्तर) चक्षु इन्द्रिय के निग्रह (निरोध) से जीव के मनोज्ञ और अमनोज्ञ (सुन्दर और असुन्दर) रूपों के प्रति होने वाले राग-द्वेष का निग्रह हो जाता है और वह तन्निमित्तक कर्म-रूपों से होने वाले कर्मों का बन्ध नहीं करता अपितु पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
Maxim 64 (Q). 'Bhante! What does a jiva (soul / living being) obtain by subduing the sense-organ of sight (chakshu-indriya-nigraha ) ?
(A). By subduing the sense-organ of sight a being subdues the attachment and aversion for pleasant and unpleasant appearances. Then he stops acquiring bondage of karmas caused by that and sheds the karmas accumulated in the past.
सूत्र ६५ - घाणिन्दियनिग्गहेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
घाणिन्दियनिग्गणं मणुन्नामणुन्नेसु गन्धेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
सूत्र ६५ - ( प्रश्न) भगवन् ! घ्राण इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ?