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on सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [388]
f Jinakalpna simplicomplishes
पडिरूवयाए णं लाघवियं जणयइ। लहुभूए णं जीवे अप्पमत्ते, पागडलिंगे, पसत्थलिंगे, विसुद्धसम्मत्ते, सत्तसमिइसमत्ते, सव्वपाणभूयजीवसत्तेसु वीससणिज्जरूवे, अप्पडिलेहे, जिइन्दिए, विउलतवसमिइसमन्नागए यावि भवइ॥ ___ सूत्र ४३-(प्रश्न) भगवन् ! प्रतिरूपता (जिनकल्प जैसे आचार-पालन) से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) प्रतिरूपता से जीव लघुता प्राप्त करता है। लघुभूत होकर जीव प्रमादरहित, प्रकट लिंग (वेष) वाला, प्रशस्त लिंग वाला, विशुद्ध सम्यक्त्वी, धैर्य (सत्त्व) और समितियों से परिपूर्ण, सभी प्राण-भूत-जीव-सत्त्वों के लिए विश्वसनीय, अल्प प्रतिलेखना वाला, जितेन्द्रिय, विपुल तप और समितियों से सम्पन्न होता है।।
Maxim 43(Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by conforming to the standard (pratiroopata)?
(A). By conforming to the standard (of Jinakalpa, the highest level of ascetic conduct) a being gains simplicity and humility. After gaining simplicity he becomes stupor-less, naturally clad, sky-clad, perfectly righteous and accomplished in patience and circumspection. He inspires trust in all beings (praan), organisms (bhoot), souls (jiva), and entities (sattva). He requires very limited inspection (as he owns almost nothing). He conquers his senses and indulges in very high level of austerity and circumspection.
सूत्र ४४-वेयावच्चेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वेयावच्चेणं तित्थयरनामगोत्तं कम्मं निबन्धइ॥ सूत्र ४४-(प्रश्न) भगवन् ! वैयावृत्य से जीव को क्या उपलब्ध होता है? (उत्तर) वैयावृत्य से जीव तीर्थंकर नाम-गोत्र कर्म का बन्धन (उपार्जन) करता है।
Maxim 44 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by rendering service to others (vaiyavritya)?
(A). By rendering service to others a being acquires bondage of Tirthankar naamgotra karma (karma that determines destiny, body and status of a Tirthankar).
सूत्र ४५-सव्वगुणसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
सव्वगुणसंपन्नयाए णं अपुणरावत्तिं जणयइ। अपुणरावत्तिं पत्तए य णं जीवे सारीरमाणसाणं दुक्खाणं नो भागी भवइ॥
सूत्र ४५-(प्रश्न) भगवन् ! सर्वगुणसम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है? ___ (उत्तर) सर्वगुणसम्पन्नता से जीव अपुनरावृत्ति (मोक्ष) को प्राप्त करता है। अपुनरावृत्ति को प्राप्त जीव शारीरिक और मानसिक दु:खों का भागी नहीं होता।
Maxim 45 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by acquisition of all virtues (sarvagunasampannata)?