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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनत्रिंश अध्ययन [386 ]
जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ। अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ॥
सूत्र ३८-(प्रश्न) भगवन् ! योग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) योग (मन-वचन-काय योगों के व्यापारों) के प्रत्याख्यान से अयोगत्व की प्राप्ति होती है। अयोगी जीव नए कर्मों का बन्धन नहीं करता, पूर्व में बँधे हुए कर्मों की निर्जरा करता है।
Maxim 38 (Q). Bhante! What does a jiva (soul/living being) obtain by renouncing association (yoga-pratyakhyan)?
(A). By renouncing association (of mind, speech and body) a being attains state of dissociation (from activities associated with mind, speech and body). A being so dissociated does not acquire fresh karmic-bondage but sheds formerly accumulated karmas.
सूत्र ३९-सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किंजणयइ ?
सरीरपच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणत्तणं निव्वत्तेइ। सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ॥
सूत्र ३९-(प्रश्न) भगवन् ! शरीर-प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) शरीर के प्रत्याख्यान से जीव सिद्धों के अतिशय गुणत्व (गुणों) को प्राप्त कर लेता है। सिद्धों के अतिशय गुणों से संपन्न जीव लोक के अग्र भाव में पहुँचकर परम सुखी हो जाता है। ___Maxim 39 (Q). Bhante ! What does ajiva (soul/living being) obtain by renouncing body (sharira-pratyakhyan)? ___(A). By renouncing body a being (soul) acquires superlative virtues of the Perfect. ones (Siddhas). Endowed with superlative virtues of the Perfect ones, the soul reaches the edge of universe (Lokagra) to attain the ultimate bliss.
सूत्र ४०-सहायपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ। एगीभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावमाणे अप्पसद्दे, अप्पझंझे, अप्पकलहे, अप्पकसाए, अप्पतुमंतुमे, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिए यावि भवइ॥
सूत्र ४०-(प्रश्न) भगवन् ! सहाय (सहायक तथा सहायता के) प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है?
(उत्तर) सहाय-प्रत्याख्यान से जीव एकीभाव को प्राप्त करता है। एकीभाव को प्राप्त साधक एकत्व की भावना करता हुआ अल्प शब्द वाला, वाक् कलह से रहित, झगड़े-टंटे से दूर, अल्प कषाय वाला, अल्प तू-तू, मैं-मैं वाला होकर संवर-बहुल तथा समाधियुक्त होता है।
Maxim 40 (Q). Bhant! What does a jiva (soul/living being) obtain by renouncing help (sahaya-pratyakhyan)?